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गिद्ध दृष्टि और मौत के दर पर दस्तक देती नन्ही ज़िंदगी..!!!

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“नितिन राजीव सिन्हा”

दुनिया इन दिनों ईसाई और इस्लाम में बटी हुई है वैसे धर्म और भी हैं लेकिन न्यूजीलैंड और फिर श्रीलंका में जो हुआ वह धर्म के लिये की गई धार्मिक हिंसा थी लिखना होगा कि आधुनिक परिवेश में धर्म वैमनस्य का कारण है पढे-लिखे और सम्पन्न घरानों के लोग आत्मघाती बम बन कर घूम रहे हैं..,
लेकिन इस भूख से मरती हुई बच्ची का धर्म क्या था..? शायद यह मुस्लिम थी या ईसाई भी हो सकती है पर,दम तोड़ते समय वह सिर्फ़ इंसान थी न खुदा उसका था न जीसस उसके हुए,यह १९९३ में दक्षिण सुडान में पड़े हुए आकाल की यह विभीषिका है जिसका दंश नन्ही सी बच्ची झेल रही है लेकिन दूर एक गिद्ध उसके मरने का इंतज़ार कर रहा है ताकि वह अपने लिये भोजन का जुगाड़ कर सके..,
धर्म के अस्तित्व पर यदि इस चित्र के संदर्भ में बहस छेड़ दी जाये तो यह बच्ची तस्वीर से बाहर निकल आएगी और शायद कह देगी भूख मेरा सहारा है,रोटी मेरा आसरा है पर,इन दोनों के बीच ईश्वर है उसका मुझे हौसला है लेकिन करूँ क्या ?
गिद्ध की भूख मुझसे देखी नहीं जा रही है इसलिये ख़ुद की भूख की व्याकुलता में मैं दम तोड़ रही हूँ..!!! बच्ची दुनिया को वह संदेश दे गई है कि मैं दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तस्वीर हूँ मैं इंसान हूँ और खुदा के दर पर लौट कर जा रही हूँ..,मेरी इबादत मेरी भूख है और मेरा धर्म रोटी का इक टुकड़ा है..,
१९९४ में इस तस्वीर को पुलिट्जर पुरस्कार मिला फ़ोटो ग्राफ़र कार्टर ने आत्म ग्लानि को जिया क्योंकि वह भूख से मरती हुई बच्ची को तब रोटी का टुकड़ा नही दे सका था आख़िर उसे फ़्लाइट पकड़ने की जल्दी थी,बाद में कार्टर ने आत्महत्या कर ली आख़िर वह इंसान था इंसानियत के धर्म का पालन न कर पाने की पीड़ा में वह अवसाद को जी रहा था..,
“इस तस्वीर की प्रसिद्धि the vulture and the little girl के तौर पर हुई..”

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