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इंदिरा की तारीफ उनके वार लीडरशिप के लिए कीजिये, मिराज के लिए नहीं।

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बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति

कल से मोदी विरोधी ने इंदिरा को याद करना शुरू किया। मोदी, मोदी होते होते व्यक्ति देश और इसकी संस्थाओं को टेक ओवर न कर ले और फिर प्रजातन्त्र के लिए विकट समय न आ जाये, इस प्रवृत्ति के खिलाफ लोगों को सचेत होने की जरूरत है, इसके पहले इंदिरा इंदिरा कल से रट लगाना शुरू। 1971 के वॉर में इंदिरा के लीडरशिप की दुनिया ने तारीफ की थी। उस समय आर्मी के लीडर मानेकशॉ थे। वे एक बहादुर और और एक सच्चे फौजी थे। जनरल वी के सिंह टाइप के नहीं। पोलिटिकल लीडरशिप की हाँ में हाँ मिलाने वाले नहीं। तो जब इंदिरा गांधी ने मानेकशॉ से पूछा कि आर्मी वार के लिए कब तैयार हो जाएगी, तो इंदिरा के प्रेसर के सामने झुकने से साफ मना करते हुए उन्होंने बंग्लादेश की भौगोलिक परिस्थितियों मतलब नदियों की बहुतायत का हवाला देते हुए मानसून के बाद ही का समय दिया।

तो इंदिरा ने निश्चय किया कि इस दौर में वे दुनिया भर में घूमकर पाकिस्तानी के पूर्वी पाकिस्तान के यानी अभी के बांग्लादेश में अत्याचारों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तैयार करेंगी। पाकिस्तानी आर्मी का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। ढाका यूनिवर्सिटी पर आर्मी ने धावा बोला। वहां की लड़कियों के साथ रात भर बलात्कार किया। बौद्धिक लोगों से सब डरते हैं। बाहरी लोग और देश के अंदर भी तानाशाहों के समर्थक। तो बंग्लादेश में उनका कत्लेआम किया गया। 2 करोड़ के आसपास बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आ गए पनाह मांगते। भारतीय सेना मुक्तिवाहिनी को ट्रेनिंग दे रही थी। कलकत्ता की सड़कों, गलियों, घरों में बंगलादेशी शरणार्थी भर गए थे। भारत इतने लोगों को पालने की स्थिति में नहीं था। इस मसले को सुलझाने के लिए युद्ध अवश्यम्भावी हो गया था। पर बंग्लादेश की पीठ पर चीन और अमेरिका का हाथ था। अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन इंदिरा गांधी को घृणा की नज़र से देखते थे और उन्होंने इंदिरा के लिए काफी गंदे शब्दों का भी प्रयोग किया था। फाइनली दिसंबर में इंडियन आर्मी पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश कर गयी। युद्ध को जल्द समाप्त करने का प्रेशर था। क्योंकि शंका थी कि एक तो चीन कहीं अरुणाचल प्रदेश में ईस्टर्न फ्रंट न खोल दे। ऐसे में इंडियन आर्मी प्रेसर में आ जाती। दूसरे, अमेरिका ने धमकी दे दी थी कि अगर इंडिया तुरंत युद्ध समाप्त नहीं करता, तो यूएस अपना नुक्लेअर पावर से लैस सांतवा बेरा बंगाल की खाड़ी में भेज देगा।

पर इंडियन आर्मी की बहादुरी, मानेकशॉ की लीडरशिप, बंगलादेशी मुक्ति वाहिनी की देशभक्ति, बंगलादेशी लोगों का पाकिस्तानी आर्मी से पूर्ण असहयोग, सिर्फ कट्टरपंथी संस्था जमात ए इस्लामी ही पश्चिमी पाकिस्तान के समर्थन में थी, और फिर पाकिस्तान के दोनो हिस्सों के बीच 1000 किमी की दूरी आदि कुछ ऐसे कारक थे कि बंग्लादेश में 90000 पाकिस्तानी आर्मी ने लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

उस समय भारत मे एक तबका जोश में आ गया और ये मांग करने लगा कि भारतीय सेना को अब इस्लामाबाद कूच कर जाना चाहिए। पर पोलिटिकल लीडरशिप आज की तरह देश मे युद्ध उन्माद फैलाने में यकीन नहीं रखता था। वो अच्छी तरह समझता था कि अभी तक का युद्ध सेल्फ डिफेंस में था, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़र में पाकिस्तान आक्रमणकारी था, तो उसके साथ इंटरनेशनल कम्युनिटी की सहानुभूति नहीं थी, पर अगर अब इंडियन आर्मी इस्लामाबाद कूच करेगी तो भारत ये एडवांटेज खो देगा। इसलिए युद्ध के अंत की घोषणा कर दी गयी।

इधर इससे पहले कि यूएस का सांतवा बेड़ा बंगाल की खाड़ी में पहुंचता, इंदिरा ने अपने विदेश मंत्री धर को ussr भेज दिया और 1971 की मैत्री की संधि कर ली। इस तरह इंदिरा ने देश को बचाया।

बंग्लादेश युद्ध मे इंदिरा की लीडरशिप ने इंदिरा को दुनिया भर में ख्याति दी। वे मोदी की तरह धप्पा नहीं मार रही थीं। ठोस निर्णय ले रही थी। मोदी भक्तों का सोशल एनालिसिस अगले पोस्ट में होगा। पर मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि इंदिरा की तारीफ उनके समझदारी भरे लीडरशिप के लिए होनी चाहिए। पर सोशल मीडिया में तारीफ ऐसे शुरू हो गयी कि मिराज प्लेन्स इंदिरा ने खरीदे थे। आज 6 बम गिराने में काम आए, इसलिए इंदिरा की जय हो।

तो मैं कहना चाहूंगा कि मिराज भी कोई देशी प्लेन नहीं था। उसी फ्रांस से खरीदा गया, जहां का राफेल है। राफेल, बोफोर्स घोटाले इसलिए नहीं माने जाते कि वे खराब माल थे या हैं। बल्कि इसलिए कि उसमें किक बैक का लेन देन हुआ है, सीधे शब्दों में दलाली खाई गयी। जितना प्राइस था या है, उससे ज्यादा पे किया गया।

मिराज के लिए तारीफ न करके तेजस के लिए तारीफ की जा सकती है। मिराज की तारीफ मुझे दीवाली की याद दिलाती है जब भयंकर रॉकेट खरीद कर लेते हैं, फोड़ते हैं और राकेट बनाने वाले की बजाय हम अपनी पीठ ठोकवाते हैं।

तो इंदिरा की तारीफ उनके लीडरशिप के लिए कीजिये। मिराज के लिए नहीं। नहीं तो ये वही बात हो जाएगी कि F 16 बमवर्षकों के लिए जियाउल हक के गुण पाकिस्तानी गाने लगें।

बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति[लेखक]

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