गजल
ए मेरे दिल तुझको महबूब ए इलाही की कसम
रस्मे उल्फत मेरे दिलबर से निभाते रहना
मैं ये चाहूंगा उसे टूट के तूं प्यार करें
वो जो आए के ना आए तूं इंतजार करें
नगम ए प्यार के दुनिया को सुनाते रहना
रस्मे उल्फत...........
उसकी मर्जी है तुझे प्यार करें या ना करें
वफाएं फिर भी मेरी जां पे तूं निसार करे
उसका हर दर्द चुपके से उठाते रहना
रस्मे उल्फत...........
इतना मायूस हुआ "बेबस" उनको खोने से
अब तो इंकार करे आंख मेरी रोने से
अपना हर दर्द दुनिया से छुपाते रहना
रस्मे उल्फत...........
( जगजीत सिंह "बेबस" मोबाइल 7354302509)