आचार्य सतीश देशपाण्डे निर्विकल्प
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हमें दो शब्दों में अंतर समझना होगा , विवादित (disputed) और विवाद्य (disputable) , यदि ये शब्द नहीं हैं तो , गढ़ने होंगे । क्योंकि इन दोनों के घालमेल से भ्रम की स्थिति निर्मित हो जाती है ।
अब हिजाब को ही ले लिया जाए यदि इस मुद्दे को ग़ुब्बारा बना कर इसमें मन पसंद कपड़े पहनने के अधिकार ,(एक नेत्री ने तो बिकिनी को भी शामिल किया ; अब यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि यह अवधारणा शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी लागू करने का अभिप्राय था या नहीं ) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार , धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार जैसी बातों की हवा भरी जाए , तो मुद्दा ख़ूब फूलेगा , और इस मुद्दे का अनुपातहीन विरोध भी ग़ुब्बारे को बाहर से हवा देकर और अधिक ऊंचाई पर उड़ते रहने के लिए आसमान उपलब्ध कराएगा !
प्रयेक उच्च शिक्षण संस्था में छात्रों के लिए यू जी सी के दिशा निर्देशों के परिपालन में ' परिचय पत्र ' जारी किए जाते हैं , जिन्हें कैम्पस में मौजूदगी के दौरान साथ रखना अनिवार्य है , कक्षा में भी इसके अतिरिक्त महाविद्यालय या विश्वविद्यालय के पुस्तकालय , क्रीड़ा प्रतियोगिता , परीक्षा इत्यादि विभिन्न प्रयोजनों के लिए भी अनिवार्य हैं ।
ज़ाहिर है यह फ़ोटो युक्त परिचय पत्र चेहरे से मिलान कर सत्यापन कर पाने के लिए ही होता है । यह परिचय पत्र ही चेहरा और चेहरे के मिलान के ज़रिए अनधिकृत व्यक्ति के प्रवेश को रोकने और सुरक्षा के लिए एकमात्र सर्व सुलभ और कारगर उपकरण है । ज़रूरी है कि चेहरा और परिचय पत्र दोनों खुले रहें। यदि समझना मुश्किल हो रहा हो तो खुले चेहरे वाला गणवेश (यूनिफ़ॉर्म) निर्धारित किया जाए ।
जब संस्थाएँ इतनी प्रभुता संपन्न हैं ,कि नियम और अनुशासन का हवाला दे कर माथे पर बिंदी और ज़ुबान पर हिंदी की मनाही कर सकती हैं, नियम भंग होने पर, मिमियाते विरोध को पैर के अँगूठे से कुचल मसल कर दण्ड स्वरूप विद्यार्थी को संस्था से बाहर का रास्ता दिखा सकती हैं ,तो ऐसे मुद्दे को हवा देना न्याय सम्मत नहीं होगा।इस संबंध में माननीय न्यायालय का निर्णय शिरोधार्य है।