मरना तो है एक न एक दिन ,
हमारे मरने से किसी को
क्या फ़र्क पड़ता है ?
हम चाहे किसी रसूखदार ,
बाहुबली की चमचमाती गाड़ियों
के काफ़िले से कुचलकर
मरें या किसी होटल के
मुसाफ़िर की तरह आधी रात को
किन्हीं ताकतवरों की बन्दूक से मरें ,
मरना हमारी नियति है।
हमारे मरने के बहाने घड़ियाली आँसू
बहाना उनकी फ़ितरत है ,
हम हैं इस देश के साधारण लोग।
बेमौत मरना ही हमारी किस्मत है !
हमें मारकर अट्टहास करते
अपनी आलीशान कारों में
शान से घूमते हैं सफ़ेदपोश ,
ताकत के नशे में चूर , मदहोश ।
वो ही तो हैं इस लोकतंत्र के पहरेदार
जन -गण -मन के अधिनायक ,
भारत भाग्य विधाता।
जिन्हें जन्म देकर अपनी बदकिस्मती पर
ख़ामोशी से रो रही है भारत माता।
--- स्वराज करुण