ग़ज़ल
जो लोग, इस जहां में,मुहब्बत मे जी रहे है।
वो लोग, जिन्दगी की, हकीक़त में जी रहे है।।
इंसानियत भुलाकर, खुद को, भूला रहे है।
किसको खुशी,वो देंगे,जो नफरत में जी रहे हैं।।
मुहब्बत बनाने वाले,जिस पर तेरा करम है।
होकर दिवाने तेरी, वो चाहत में जी रहे है।।
हमको तो ,दोस्त बनकर, गमखार मिल गया है।
हम तो उसी की,नज़र-ए-इनायत में जी रहे है।।
मुहब्बत भी है इबादत, "बेबस" खुदा की यारो।
मुहब्बत है, जिसके दिल मे,वो इबादत में जी रहे है।।
------------------बेबस------------------
जगजीत सिंह (बेबस)
मो0--7354302509