पत्रकारे व्यथा.....
पत्रकारे व्यथा
हासिल की डिग्री और,जब नकारा बेकार बना।
सिकोड़ नाक लगे देखने,जब से मैं पत्रकार बना।।
चार दोस्त तो बने पर दुश्मन हजार बन गए।
कागज पेन कैमरा जब से मेरा हथियार बना।।
लोग होने लगे रूबरू,मेरे खबरों के दम पर ।
बुलन्द करने आवाज़,आवाम का हथियार बना।।
भूख-प्यास पीछे छोड़ा,खबर लेने स्थल दौड़ा।
छापे खबर तब भी,जनाक्रोश का आधार बना।।
उड़ा दी नींद मैंने भी,दुस्साहस के आखों की।
कोई खुश तो कहीं,भीतरघात का शिकार बना।।
जुनून आँखों मे,कुछ कर जाने की चाहत का।
नीयत रही वफ़ा की फिर भी गुनहगार बना।।
कर्मयोगी जैसे मैं,अपनी भूमिका निभाता रहा।
बगैर पगार के भी मैं एक सजग पहरेदार बना।।
भय और अभाव मे हमेशा मेरा परिवार रहा।
यही तो व्यथा है मेरी,जब से मैं पत्रकार बना।।
समस्त पत्रकारों को समर्पित
अजय विश्वकर्मा (कोरिया)