दोस्त !
दंगा ऐसे ही,
अनायास नही होता ?
यह प्रायोजित होता है !
सुनियोजित होता है /
सुनिश्चित होता है ,,,,
वास्तव में यह
विकृत मानसिकता की
उपज है ...
जिसमें अगर कोई
मरता है /तो वो है -
आदमीयत !
और कोई जीतता है ,,,
तो वो है / हैवानियत .... !!
दंगों की आग में
कुछ लोग सेंकते हैं -
अपने स्वार्थ की रोटी ,,,
और कर देते हैं -
मानवता की,
प्रेम की /
भाईचारा की-
बोटी - बोटी .....!!
- राज चुन्नी