प्रतिध्वनि
गूंजती है कोई आवाज,
मन की गहराईयों से,
धू धू कर जलता है दिल,
चीत्कारें पटकती हैं सर,
हाहाकार मचाती है हवायें,
दिन पर दिन और,
लम्बे होते जा रहे,
रातों के घने साये,
जैसे कोई गहरे कुयें से,
आती हो किसी भटकती आत्मा की,
चीखती प्रतिध्वनि ,
हाँ ,हम निर्भयायें है,
कब मिलेगा इंसाफ हमें,
कब तक तुम्हारा अँधा कानून ,
खेलता रहेगा ,
हमारी अस्मतों से,कब तक,
भटकेंगीं हम इस प्रेत योनि में,
हाँ हमें इंसाफ दो ,इंसाफ दो।।
निर्भया के दरिंदों की वकालत करने वालों के लिये।
नीलिमा मिश्रा