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अभ्यारण्य जंगल बना सुरक्षित चारागाह,बेख़ौफ़ कट रहे हैं पेड़,अब दिन में वन विभाग नही जाते जंगल।

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साहीडाँड़- जब से हाथी गस्ती दल का गठन हुआ है वन विभाग के कर्मचारी भूल गए अपना दायित्व।फोन से हो रहे हैं जंगलो की देख रेख।

              

         वन विभाग के कर्मचारियों के कारण अभ्यारण्य जंगल अब सुरक्षित नजर नही आ रहा है।अभ्यारण्य जंगल लकड़ी तस्करों सहित  पशु चरवाहों का भी सुरक्षित जगह बन गया है।नारायणपुर से लेकर बगीचा तक कई ग्राम बसे हैं।लगभग हर गांव में वन कर्मचारियों के लिए सरकार पक्के का मकान बना रखा है ताकि जंगलों की देख रेख हो सके।क्षेत्र में हर वन बीट परिक्षेत्र पर भी किसी न किसी का दायित्व भी आबंटन है।मगर उच्च अधिकारियों के वन परिक्षेत्र में साप्ताहिक या मासिक दौरा न होने के कारण कहें या नेता तक पहुंच होने के धौंस से अपने दायित्व जिला मुख्यालय तो कहीं रेंज कार्यालय से निभाते हैं।

 

        हाथी गस्ती दल बनने से छूट गए जंगल

             

            वन विभाग का लापरवाही कहें,मनमानी कहें,या क्या कहें अभयारण्य जंगलों को अब शायद ही बचा पाएं।क्योंकि जिस दायित्व को निभाने के लिए सरकार चयन किया है वह भूल गए अपना दायित्व।अभ्यारण्य जंगल क्षेत्र में जंगली हाथियों का रहना तय है।कुछ दिन पहले क्षेत्र में हाथियों का कहर चरम पर था जनहानि सहित घरों,फसलों को नुकसान पहुंचाने से क्षेत्र दहल गया था। ग्रामीणों को हाथियों से दूरी बनाने,किस क्षेत्र में हाथी है,हाथियों से छेड़छाड़ न करने के लिए गेम रेंज में हाथी गस्ती दल का क्या गठन कर दिए वन विभाग अपना दायित्व ही भूल गये।अब कभी कभार मन किया तो एक घंटे शाम को घूम दिए।दिन को घूमने वाला झंझट भी खत्म हो गया।वन विभाग को हाथी गस्ती दल बनने से जंगल नही जाने का एक बहाना भी बन गया।

 

     पशु चारागाह और लकड़ी तस्कर अब सुरक्षित हो गये

 

        विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण क्षेत्र के लोगों के लिए पशु चारागाह और लकड़ी तस्करी करने का सुरक्षित जगह हो गया है।वन विभाग पिछले कुछ महीनों से हाथी गस्ती करने का बहाना मार भूल गए अपना दायित्व जंगलों के अपने आबंटन बीट क्षेत्र तो छोड़िए मुख्यालय में दर्शन करना मुश्किल हो जाता है।जिसके कारण जंगलों में पशु चराने वाले छोटे बड़े हरे भरे पेड़ पौधे को बेख़ौफ़ काटकर पशुओं को खिला रहे हैं।वहीँ लकड़ी तस्करों का भी दिन को जंगल क्षेत्र में वन कर्मचारियों का न घूमने और अपना दायित्व भूलने का जानकारी हो गया है लकड़ी तस्करी भी बेख़ौफ़ जंगलों को साफ करने में लगे हैं।

 

    ग्रामीणों से दूरी बनाते हैं वह विभाग

 

   क्षेत्र में हर गांव में लगभग वन विभाग का भवन है और उक्त भवन में किसी न किसी के अज्ञात नाम का कर्मचारी रह भी रहा है।लेकिन गांव के सरपंच या बुद्धिजीवी लोगों से ये हमेशा दुरी बनाये रखते हैं। ग्राम सभा में अपनी उपस्थिति देना न ही अपने बिट परिक्षेत्र में घूमना न ही सबंधित क्षेत्र के किसी भी लोगों से मिलने का प्रयास करते हैं।क्षेत्र के लोग प्रयास करते हैं कि वन कटाई कम हो जंगल बच जाए अपने स्तर से वन विभाग को लकड़ी तस्करों सहित अन्य मामलों में भी फोन के माध्यम से सुचना देने का प्रयास करते हैं लेकिन मुख्यालय में रहेंगे तब न।और अपना दायित्व भी बहाना मारकर निभा लेते हैं।

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