नितिन राजीव सिन्हा
Hyderabad से सुखद ख़बर आ रही है कि वहाँ न्याय हुआ है रेप और murder करने वालों को उनके किये की सज़ा मिली है हम राहत की साँस ले सक रहे हैं..,
फिर भी आत्म मंथन तो होना चाहिये के आख़िर ऐसा क्या हो गया है कि मर्द भूखे भेड़िये हो गये हैं जो समाज मातृशक्ति का उपासक हो वह बच्चियों की असमत लूट रहा हो तेलंगाना से लेकर उत्तर प्रदेश तक हर तरफ़ दूषित वैचारिक वातावरण बन गया हो..,
एक दौर था हम अपनी बेटियों को सुमन कहते थे उन्हें यह नाम देते थे कुछ code of conduct भी थे जो घर की इज्जत को बाज़ारू होने से रोकते थे पर,दौर बदला है सुमन जैसे संबोधन अब हम नहीं देते हैं और बेटियाँ सुमन कहलाना पसंद भी नहीं करतीं हैं वो,अब वुमन हो गईं हैं परिधान जो लज्जा को सहेजता था उसे छुपाता था वह अब दिखाता है नज़रें झुक जायें या वहीं रुक जायें इसका निर्धारण मर्द को करना है स्त्री सशक्त हुई है तो यह उसका साहस है के,वह बे पर्दा हुई है..,
बलात्कारी मन से ऐसा हो यह संभव है पर,कर्म करने का आमंत्रण देना भी सभ्य समाज की असभ्यता कही जायेगी जिस पर हमें विचार करना चाहिये हमें परिधान के स्तर पर संयत होना चाहिये सुंदर दिखने और अधिक तन दिखाने की प्रवृत्ति से बचना चाहिये..,
तेलंगाना पुलिस ने आरोपियों को निपटा दिया है कुछ और ऐसे ही line of action हो तो भूखे भेड़िये डरेंगे महिलाओं को तसल्ली होगी के,पुलिस उनके साथ अपेक्षित कर रही है..,पुराने ज़माने के गीत नज़रों को नज़ारे बना देते थे अब के गीत संगीत भी यौन उन्मुक्तता को प्रकट करते हैं साहित्य सृजन इस दौर में गौण हुआ है इसलिये माहौल दूषित हुआ है पहले रोमांटिक गीतों के शब्द कान मे रस घोल देते थे अब के गीत बेटी के बाप के सिर के पसीने निकाल देते हैं..,पुराने गीत के शब्द संयोजन देखिये मन को कैसा सुकून देता है-
तेरी आँख में
है ख़ुमार सा
ये,शमा नशे
में है चूर सा
वो,भी इत्तेफाक
की बात थी
ये भी इत्तेफाक
की बात है..,