पढ़िये..कविता ऐसी होती है..
मौन की शक्ति
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मैं बतियाती रही
वह मौन रहा!
खिसियाती रही
वह मौन रहा!
चीखती रही
वह मौन रहा!
चिल्लाती रही
वह मौन रहा!
आखिर रो पड़ी।
वह फिरभी
मौन रहा!
सांत्वना के दो बोल
न फूटे उसके मुख से
अब मेरा क्रोध
शांत हो गया।
शिथिल पड़ गयी मैं
ऊर्जा नष्ट किया
व्यर्थ ही।
क्योंकि-
अचानक जब
उसकी आँखों में झाँका
सब समझ आ गया
उसने मेरी हर बात का
जवाब दिया
मौन रहकर ही
मैं ही आवेश में थी
न कुछ सुना
न समझ पाई
उसका मौन
बोलता रहा...
मगर मैं--
अपने ही शब्दों के शोर में
कुछ सुन न पाई
कुछ समझ न पाई
शर्मिंदगी हुई
सशक्त मौन
मुझे छूने लगा
अब मैं भी
सीखना चाहती हूँ
"मौन की भाषा"
--डॉ. पुष्पा सिंह 'प्रेरणा'
उमाकांत पांडे जी के फेसबुक वॉल से साभार