घर से बाहर, निकले, तो हम किधर निकले,
गमो की धूप,कयामत की, हम जिधर निकले,,
घर से बाहर निकले-------------
जल रहा आदमी, सूखे हुए दरख्तों की तरह।
हर तरफ आग है,नफरत की,हम किधर निकले।।
घर से बाहर निकले---------------
अंधेरे बढ़ गए हरसू,जुल्मो सितम के यारो।
ढूढ़ने रौशनी, मुहब्बत की,हम किधर निकले।।
घर से बाहर निकले---------------
सुनता नही है कोई इंसानियत के नाले ।
सुनाने बात चाहत की,हम किधर निकले।।
घर से बाहर निकले----------------
बस्तियां बन गई ,सूरत जंग-ए-मैदान की यारो ।
हद बढ़ने लगी आफत की हम, किधर निकले।।
घर से बाहर निकले---------------
जिगर का दर्द ऐ "बेबस" हदों को लांग न जाये ।
कही न बात राहत की ,हम किधर निकले।।
घर से बाहर निकले--------
----------------जगजीत सिंह(बेबस)-------------