इंदीवर
इक क़तरा भी
आँसू का हुकूमत
के लिये ख़तरा है
ये तो कारवाँ है
अश्कों का सिसकियों
से अटा पड़ा है
देख बागबॉ तेरा
जहाँ चहकते थे
परिंदे खिलते थे
फूल जिन पर
मँडराती थी तितलियाँ
वहाँ मौत का मंज़र है
देख तेरा देश बदहाल
है देख देश की तस्वीरें
कितनी बेहाल हैं
तू हुलिया बदल
के,दाढी की फ़सल
से बागबॉ के गुलज़ार
होनें की ख़ुशफ़हमी
पाल कि तूनें अपनें
हाल पर छोड़ दिया
है आवाम को
देख उधर जिधर
शमशॉ का रूख
है उधर इंसानों
की भीड़ है
कुछ में जॉ
बची है कुछ
की जॉ निकली है..,