वे पन्ने अनपठित रह गये
सहस्त्रों पन्नो के प्रेमग्रंथ बीच
कोरे पन्नों पर जो लिखा था
जिसपर तुम्हारा नाम छपा था
हर अक्षर पर जो चेहरा छपा था
..जिसे पढ़ा जाना जाना था पहले
..जिसे लिखा जाना था पहले
..जिसे गढ़ा जाना था पहले
..वहीं कहीं पर तो मैं टिका था
पर वह पन्ने अनपलिटत रह गये..
...वे पन्ने अनपठित रह गये..
..कहीं टंकित और अटंकित
के बीच रह गये थे जो शब्द
और हासिये पर भूल से तुमने
जो कोई एक नाम उकेरा..
हाँ तब मैं ही था वह अक्षर तेरा..
जो अनसृजित अक्षर जो
अनपठित रह गया..
अन गढ़ित..
एक अधूरे गीत की तरह..
..न जाने कितने अधूरे गीत यहीं सोये हैं.
[उमाकान्त पांडेय, अम्बिकापुर]