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  2. सीएम मैडम का कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र में धुआंधार प्रचार, कहा कि मोदी की गारंटी और साय सरकार की उपलब्धियां दिलाएंगी भाजपा को प्रचंड जीत, कौशल्या साय के दौरे से महिलाओं में खासा उत्साह...*
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  4. कांग्रेसी नेता ने की महिला से मारपीट एफआईआर दर्ज..
  5. छत्तीसगढ़ भाजपा प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन ने राधिका खेड़ा मामले में कांग्रेस को घेरते हुवे कहा,अपनी ही पार्टी के भीतर हो रहे महिलाओं उत्पीड़न पर प्रियंका का व्यवहार न्यायोचित नहीं,महिला उत्पीड़न के मामले में क्यों मौन रहती है प्रियंका
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प्रियंका की तरफ टुकुर टुकुर देख रही है उत्तर प्रदेश की जनता...

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नई दिल्ली से आलोक मोहन की रिपोर्ट

देश के सबसे बड़े सुबे उत्तर प्रदेश में गत कई दशकों से राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी है, सियासत की बिसात पर शतरंज के मोहरों की तरह हर कोई अपने दाँव  चल रहा है।

एक दौर वो भी था कि इस देश के सबसे बड़े सुबे पूरे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तूती बोला करती थी लेकिन जैसे-जैसे सियासत में परिवर्तन शुरू हुआ नए-नए प्रयोग शुरू हुए कांग्रेस का मूल वोटर इधर उधर भटकता हुआ कई क्षेत्रीय दलों में चला गया इसका परिणाम यह निकला कि कांग्रेस पूरे सूबे में हाशिए पर चली गई।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी ने अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए तमाम तरह के प्रयास न किए हों, लेकिन मुलायम और माया तथा उभरती भाजपा की वजह से उसकी बुनियाद मजबूत नहीं हो पाई।

80 लोकसभा सीटों एवं 402 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश की आबादी 15 करोड़ के ऊपर है, वास्तविक आंकड़ों पर ना जाएं तो पता चलता है इस प्रदेश में ज्यादातर वोटर पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखता है इसमें 54% से ज्यादा आबादी अति पिछड़े वर्ग की है, इन्हें हम प्रजा जातियों के नाम से भी जानते हैं इनमें नाई,कुम्हार, लोहार, मनिहार, प्रजापति आदि छोटी-छोटी जातियों व उप जातियों का नाम लिया जा सकता है। जिनकी संख्या सैकड़ों में है, इसी तरह दलित वर्ग की आबादी भी निर्णायक भूमिका में है, जबकि प्रदेश में 2 दर्जन से ज्यादा ऐसे जिले हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है, वह भी लोकसभा व विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका में रहते हैं, यह वह वर्ग है जो 80 के दशक तक कांग्रेस के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़ा रहा लेकिन बीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद मंडल और कमंडल की राजनीति ने यह वर्ग इधर उधर होता चला गया।

परिणाम यह निकला कि कांग्रेस का ग्राफ भी नीचे चला गया, प्रियंका गांधी के मैदान में उतरने से लग रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में यह प्रदेश एक बार फिर राजनीति का मजबूत अखाड़ा बनेगा, ऐसा इसलिए कहा जा सकता है की प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक घर बनाने जा रही हैं और वही रहने का मन बनाया है, यह तो समय ही बताएगा कि प्रियंका गांधी आने वाले महीनों में सत्तारूढ़ भाजपा, सपा एवं बसपा व अन्य छोटे-छोटे दलों को चुनौती दे पाती है कि नहीं।

लेकिन इतना तो तय है कि अगर प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहकर अपनी राजनीति को अंजाम तक पहुंचाती हैं तो उक्त वर्ग के वोटों पर जिन पर किसी समय में कांग्रेस का वर्चस्व था अब उन वर्गों पर सपा/ बसपा और भाजपा का कब्जा है, पर सेंध लगाने में कामयाब हो सकती हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब वे उत्तर प्रदेश में इस वर्ग के लोगों को महत्व दिया जाए, इसकी वजह यह है अब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के हाथ में जिन लोगों की कमान रही है, ज्यादातर वे लोग उच्च वर्ग से ताल्लुक रखने वाले ही रहे हैं। शायद यही वजह है की कांग्रेस से अति पिछड़े वर्ग/ दलित एवं मुस्लिम कटता चला गया। और परिणाम यह निकला सैकड़ों विधायकों वाली कांग्रेस 2 अंको में आकर सिमट गई। और इस चीज का पूरा फायदा समाजवादी पार्टी/ बसपा एवं भाजपा ने पूरी तौर पर उठाया।

आज स्थिति यह है कि कांग्रेस के तमाम प्रयासों के बावजूद भी वह सफल नहीं हो पाई, अंततोगत्वा गांधी परिवार के लोगों को ही उत्तर प्रदेश की कमान संभालनी पड़ी।

यहां इस बात का उल्लेख कर देना उचित होगा कि देश की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित सप्ताहिक इंडियन जंग ने 5 वर्ष पहले ही एक रिपोर्ट छापी थी, इसमें साफ साफ कहा गया था कि अगर प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी जाती है तो कांग्रेस की पुनर वापसी हो सकती है।

परंतु ऐसा नहीं किया गया, बावजूद देर आए दुरुस्त आए, हो सकता है कि गांधी परिवार को उत्तर प्रदेश फतेह करने के लिए तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़े, लेकिन इतना माना जाना चाहिए अगर की कांग्रेस पार्टी इमानदारी से उन छोटे छोटे वर्गों को जो हाशिए पर है उनको लामबंद करती हैं तो उसका पुराना वोटर धीरे-धीरे ना केवल कांग्रेस पार्टी की तरफ समर्पित होगा बल्कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की विधायकों की संख्या काफी हद तक बढ़ सकती है। यहां इस बात का भी उल्लेख करना उचित होगा कि यह वही कांग्रेस पार्टी है जिसने उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक प्रधानमंत्री वह राष्ट्रीय नेता दिए हैं इनमें चाहे पंडित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अथवा इंदिरा गांधी व कमलापति त्रिपाठी जैसे कद्दावर नेता, एक समय था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर केसी पंत, चंद्रभान गुप्ता, श्रीमती हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह, श्रीपति मिश्रा आदि लोग मुख्यमंत्री रहे हैं। इसी कांग्रेस में महावीर प्रसाद जैसे दलित लोग उत्तरप्रदेश के प्रमुख नेताओं में रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस का दायरा उत्तर प्रदेश में सीमित होता गया तमाम दलित, अति पिछड़ी जातियों व मुस्लिम वर्ग के लोग बाहर होते गए। इसकी वजह यह रही है कि इन लोगों की पद और प्रतिष्ठा को दरकिनार करते हुए उन लोगों को महत्व दिया गया जो परिक्रमा वह चापलूसी की राजनीति में माहिर थे।

परिणाम यह निकला कि उत्तर प्रदेश के तमाम कद्दावर नेता किसी न किसी दल में अपना ठिकाना बनाने के लिए चले गए, सच अगर कहा जाए कि उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में कांग्रेस की लुटिया डुबाने में कांग्रेस के ही लोगों ने अहम भूमिका अदा की है। इस सच्चाई को तमाम बड़े कांग्रेस के नेता बखूबी जानते हैं ,अब देखना यह होगा उत्तर प्रदेश में रहकर प्रियंका गांधी की राजनीति आने वाले दिनों में अपनी पार्टी को किस मुकाम तक पहुंचा पाती हैं।

वह इसलिए उत्तर प्रदेश में सपा / बसपा के अलावा अभी भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो कांग्रेस तरफ टुकुर टुकुर निहार रहा है, इसका फायदा कांग्रेस चाहे तो उठा सकती है, इसकी वजह यह है कि उत्तर प्रदेश की एक बड़ी आबादी अपने आप को असहाय और नेतृत्व विहीन महसूस करती है, इसका फायदा प्रियंका गांधी को मिल सकता है बरश्ते वे इमानदारी से चापलूसों को दरकिनार कर काम करने वालों को महत्व दे।

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