नितिन राजीव सिन्हा
सन् १९७७ में बंबई के हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के प्रसिद्ध कामेडियन असरानी की बहुचर्चित फ़िल्म चला मुरारी हीरो बनने आई थी यह पटकथा अदना से अदानी बनने की तब की रोचक कथा थी जिसमें गरीब कमजोर कामचोर युवा की हसरतों पर क़िस्मत की बुलंदियों का फ़लसफ़ा था फ़िल्म चली और अब तक चल रही है तक़रीबन पैंतालीस सालों के बाद भी वह कथा जीवंत है वह अफसाना चलन में है मुरारी अब भी है हीरोगिरी की वह इंतेहां भी है किरदार जीवंत किंवदंती बन गया सा मालूम होता है तब मुरारी था अब,मनोहारी मोदी हैं..,
चकाचौंध,की धमक उस दिन से शुरू होनी थी जिस दिन वर्ल्ड कप क्रिकेट का फ़ाइनल मैच खेला गया पर टीम इंडिया की आस्ट्रेलिया के हाथों हार ने पीएम मोदी के मंसूबों पर पानी फेर दिया “बैंड बाजा बारात लेकर अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम पहुँचे शाह मोदी ने हवाई जहाज़ों के एयर शो के साथ मैच की शुरुआत की थी यह जीत के जश्न पर मोदी मैजिक का माहौल बनाने का प्रयास था..,
पर,मैच का अंत होते होते पब्लिक पनौती पनौती कर धिक्कारने लगी जबकि जीत के जश्न में मोदी मोदी के नारे लगते पूरा स्टेडियम मोदी मय हो जाना था जीत के जश्न का शंखनाद कर एक सौ चालीस करोड़ लोगों को साधने के उद्बोधन होते पर,मंशा वह ध्वस्त हो गई धमक थम गई है वह धमक जो २०२४ के चुनाव की ब्रांडिंग कर सकती थी हासिये के हिस्से हो गई..,
टीम इंडिया की हार के बाद पीएम मोदी के हीरो बनने के मंसूबों ने किस तरह दम तोड़ा है उसका अंदाज़ा इसी बात से हो सकता है कि, असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्वा सरमा ने भारतीय जनता पार्टी का पक्ष हास्यास्पद तरीक़े से रखा है कि उस दिन १९ नवंबर को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की जयंती थी इसलिए हम मैच हार गये यह बयान बताता है कि भाजपा नेतृत्व अब अपनी धार खो चुका है ऊलजुलूल बोलकर राजनीति करने की उनकी मजबूरी यह बताती है कि मैदान पर उनकी पकड़ ढीली पड़ चुकी है ..,
वैसे,पप्पू पॉलिटिकल ऐरा का अवसान होता हुआ दिख रहा है आगामी दिनों में पनौती पैरा,सोशल मीडिया की सुर्खियाँ बटोरेगा इस बात की संभावना बलवती है कि २०२४ के लोकसभा चुनाव में यह भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदों पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है अजातशत्रु की तथाकथित छवि का मिनटों में पनौती हो जाना यह साबित करता है कि वक्त सबको पर कसता है उसने हिंदी फ़िल्मों के कॉमेडियन रहे असरानी को भी कसौटी पर कसा था और मोदी को भी कसौटी पर कस रहा है..,
फरयाग आजर के शेर हैं कि,-
अदा न हुआ
क़र्ज़ और वजूद
ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का
देते देते सूद
ख़त्म हो गया..,