लोकनायक जयप्रकाश नारायण की ११ अक्टूबर को जन्म तिथि है इसलिये उन्हें याद किये जाने का यह सर्वोत्तम समय है कि हम उस युग में उन्हें याद कर रहे हैं जबकि नरेंद्र मोदी समग्र क्रांति की धरोहर बन कर राष्ट्र की राजनीति को नियंत्रित कर रहे हैं..,
मोदी के बारे में कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान वो सरदार भेष में होते थे नाथालाल जांगड़ा और गजेंद्र गाड़कर के साथ मिलकर इंदिरा सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ काम कर रहे थे लोग कहते हैं कि वे छुप छुपाकर अपनी पार्टी के काम जेपी मूव्मेंट के लिये कर रहे थे..,
आपातकाल के दौर में राजनीतिक बंदी बनाने के आरोप इंदिरा सरकार पर लगे है तमाम बड़े नेता जेलों में ठूँस दिये गये थे वहीं पुरुष नसबंदी से डर कर भी लोग भेष बदल कर घूम रहे थे कोई सरदार हो गया था,तो कोई बाल दाढ़ी बढ़ाकर मुसलमाँ हो गया था..,
चूँकि मोदी बड़े नेता नहीं तब छूटभैये थे सो उनके सरदार बनकर भटकने की वजह पर से पर्दा उठना अभी बाक़ी है के,भय सशरीर बंदी होने का था अथवा नस के बंदी होने का..,
अब आते हैं समग्र क्रांति के रचयिता रहे जयप्रकाश नारायण की नीति पर,लिखना होगा कि उन्होंने आज़ादी के बाद राजनीति को विसर्जित कर लोकनीति को अपनाने का आह्वान किया था लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जातिप्रथा के दोषों से लोकनीति को परे रखने को कहा था जबकि मोदी ख़ुद को तेली जाति का होने का मंच से ख़ुलासा करते हैं इस तरह से वे स्वयं के लिये जयप्रकाश नारायण के सिद्धांतों को डस्टबीन के भीतर संजो देने का लैंडमार्क तय कर देते हैं..,
जेपी,सामूहिक स्वामित्व और नियंत्रण की बातें करते थे ताकि सम्पत्तियों के स्वामित्व पर ज़मींदारों और पूँजीपतियों का नियंत्रण समाप्त हो,जबकि मोदी काल में देश की सार्वजनिक सम्पत्तियों के एकाकी स्वामित्व के सिद्धांत पर आगे बढ़ा जा रहा है रेल,वायुमार्ग और तमाम उद्यम खनन आदि पर अदानी या अंबानी का क़ब्ज़ा होता जा रहा है मतलब यहाँ भी जेपी के सिद्धांत खूँटी पर टाँग दिये गये हैं..,इस विचलन की दशा पर किसी ने लिखा है-
सौ मिली
ज़िंदगी से
सौग़ातें पर,
हमको अवारगी
ही रास आई..,