पानी की इक बूँद काग़ज़ पर गिरी..शब्द जो,लिखे थे उसमें वह धूल गये चाहता था मैं कि वर्षा बूँद पर कुछ लिखूँ..कोई कविता लिखूँ पर, पेड़ के पत्तों पर गिरने वाली बूँदे काग़ज़ पर गिरी वह शब्दों को धोकर ओझल हो गई..क्योंकि पेड़ वहाँ नहीं थे..इक तनहा काग़ज़ का टुकड़ा था उस पर छोटा सा लिखा हुआ ‘शब्द’था..,