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भूख के विरुद्ध, भात के लिये छत्तीसगढ़ के गांवों में आज भी हुए विरोध-प्रदर्शन

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कोरोना महामारी और अनियोजित लॉक डाउन के कारण किसानों, ग्रामीण गरीबों, दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों तथा आदिवासियों के समक्ष उत्पन्न समस्याओं को हल करने के लिए केंद्र सरकार की उदासीनता के खिलाफ अखिल भारतीय किसान सभा के देशव्यापी आह्वान पर रायगढ़, बस्तर, सरगुजा, धमतरी, मरवाही आदि जिलों के कई गांवों में आज भी प्रदर्शन किए गए। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ किसान सभा द्वारा इस आंदोलन को *भूख के विरूद्ध, भात के लिए* नाम दिया गया है। 

प्रदर्शनकारियों ने आज चावल से इथेनॉल बनाने के राज्य सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि जैसे-जैसे देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ेगा, अर्थव्यवस्था की गति को और धीमी करेगा, लोगों की आजीविका खतरे में पड़ेगी और भुखमरी की समस्या बढ़ेगी। ऐसे कठिन समय में लोग इथेनॉल पीकर नहीं, अनाज खाकर ही जिंदा रहेंगे। इसलिए सरकार को देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए अनाज भंडार को बचाकर रखने और बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने आगामी सीजन के लिए बीज विकास निगम द्वारा धान बीजों की कीमतों में 22 से 29% तक की वृद्धि का भी विरोध किया और कहा इससे पहले से ही कर्ज़ में डूबे किसान और बर्बाद हो जाएंगे।

 

छग किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि अनियोजित लॉक डाऊन के कारण देश के करोड़ों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है और वे कोरोना से कम भूख से ज्यादा मर रहे हैं। मोदी सरकार लोगों की रोजी-रोटी को हुए नुकसान की भरपाई किये बिना ही फिजिकल डिस्टेंसिंग के सहारे कोरोना संकट से लड़ना चाहती है, जबकि आम जनता को सामाजिक सुरक्षा दिए बिना इस महामारी से लड़ा नही जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा लॉक डाउन के कारण किसानों को हुए नुकसान का आकलन करने और उस के लिए मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। साथ ही खड़ी फसलों की कटाई और खरीद को लेकर भी कोई ठोस योजना सरकार के पास नहीं है। केंद्र सरकार मनरेगा योजना में लंबित बकाया के भुगतान व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित करने के लिए भी तैयार नहीं है। 

 

उन्होंने बताया कि इस विरोध प्रदर्शन के जरिये कृषि कार्यों को मनरेगा से जोड़ने, रबी फसलों, वनोपजों, सब्जियों और दूध को सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने, सभी ग्रामीण परिवारों को 7500 रुपये मासिक आर्थिक सहायता देने, मुफ्त राशन वितरण में धांधली बंद करने, खेती-किसानी और मजदूरी करने वाले सभी लोगों को मास्क, दस्ताने, साबुन या सैनिटाइजर मुफ्त उपलब्ध कराने, शहरों में फंसे ग्रामीण मजदूरों को सुरक्षित ढंग से उनके गांवों में पहुंचाने, खेती-किसानी को हुए नुकसान के लिए प्रति एकड़ 10000 रुपये मुआवजा देने, किसानों से ऋण वसूली स्थगित करने और खरीफ सीजन के लिए मुफ्त बीज, खाद और कीटनाशक देने, राशन दुकानों से दैनिक उपभोग की सभी आवश्यक वस्तुओं को सस्ती दरों पर देने की मांग उठाई जा रही है, ताकि देश में फैलती भुखमरी की समस्या पर काबू पाया जा सके।

 

पराते ने कहा कि *भूख के विरुद्ध, भात के लिए* प्रदर्शन के जरिये व्यापक ग्रामीण समुदाय ने फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए केंद्र सरकार की किसानविरोधी नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है।

 

           

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