ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट बताती है कि चीन में मानव अंगों के प्रत्यारोपण का गोरखधंधा चलाया जा रहा है। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस गोरखधंधे को रोकने ने लिए ना तो कोई आवाज उठा रहा है और ना ही इसका विरोध किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार अमीरों की आवश्यकता पूरी करने के लिए कैदियों को बेमौत मारकर उनके शरीर से अंगों को निकाल लिया जाता है और किसी को कानोंकान इसकी भनक तक नहीं लगती। इस धंधे को उजागर करने वाले चाहते हैं कि इस क्रूरता को खिलाफ एकजुटता से चीन पर दबाव डाला जाए।
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित अन्वेषक पत्रकार एथन गटमैन ने इस संबंध में बेहद चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। गटमैन का कहना है कि जेल में अधिकतर ऐसे कैदियों को मारा जाता है जो आध्यात्म से जुड़े हुए होते हैं। उन्होंने कहा कि वे मानते हैं ऐसे कैदियों के अंग ज्यादा स्वस्थ होंगे और उनको अच्छे दामों में बेचा जा सकेगा। इस काम में सबसे ज्यादा शांतिपूर्ण बुद्ध सिद्धांतों पर अभ्यास करने वाले फालुन गोंग आन्दोलन से जुड़े लोगों को चुुना जाता है। कैदियों को मारकर उनके अंगों को निकालने से पहले उनके महत्वपूर्ण आंकड़े दर्ज कर लिए जाते हैं जैसे ब्लड ग्रुप, वर्तमान में अंगों की दशा आदि। उनका कहना है कि अमीरों की जरूरत के हिसाब से कैदियों के अंगों की बुकिंग भी होती है।
चीन में अंगों के लिए मारे जाने वाले कैदियों में सबसे पहले उन्हेें निशाने पर रखा जाता है जिनका कोई रिकॉर्ड ना हो। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उन्हें मारने के बाद उन्हें किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े। रिपोर्ट में सामने आया है कि अज्ञात और अनाम कैदी सबसे पहले चीनी क्रूरता का शिकार होते हैं। कई फालुन गोंग अभ्यासी तो इस डर से अब पहचान भी छिपाने लगें हैं कि इस घिनौनी साजिश का अगला शिकार उनको ही ना बनना पड़े।
बता दें अंग प्रत्यारोपण के संबंध में चीन का कहना है कि देश में ऐसे मामलों पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। लेकिन चाइना ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष की मानें तो फिलहाल इसके कोई सबूत नहीं मिले कि कैदियों से जबरन अंग निकाला जाना बंद हो गया है। उनका कहना है कि इस बात पर कोई शक नहीं है कि ये अभी भी जारी है।
[ऊपर दिए गए चित्र सांकेतिक हैं]