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पिछले दस साल में जशपुर जिले से ढ़ाई हजार से अधिक हुये सर्पदंश के शिकार,150 लोगों ने गंवाई जान

त्वरित उपचार से बच सकती है सर्पदंश पीडितों की जान
सांप काटने पर पीड़ित को ले जाये तुरंत अस्पताल

जशपुरनगर – जान है तो जहान है। एक बार मौत के बाद जिंदगी दोबारा नही मिलती। इसलिए जिंदगी को सही तरीके से जीने के लिये हिम्मत,साहस की जरूरत होती है। विपरीत परिस्थितियों में घबराने, हिम्मत हारने और लापरवाही करने से जान तक जा सकती है। ऐसे ही हिम्मत और साहस की कहानी है दिलमनी बाई की। जशपुर जिले के ग्राम कनमोरा, सिटोंगा की दिलमनी बाई भले ही अधिक पढ़ी लिखी नही है। लेकिन उसकी जागरूकता ने उसे मौत के गाल में समाने से बचा लिया। दरअसल दिलमनी बाई को सांप ने काटा था। जब वह खेत में रोपा लगा रही थी उसी वक्त एक विषैले सांप ने उसे डस लिया। अचानक से पैर में दर्द एवं खून निकलते देख पहले तो वह घबरा गई। उसे यह समझने देर नही लगी कि उसे सांप ने डसा है। लेकिन उसे डसने वाला सांप कौन सा प्रजाति का है यह वह नही जान पाई। सांप के काटने के बाद वह घबराई हुई दौड़ते हुये घर की ओर भागी। अपने पति विनोद कुमार को घटनाक्रम बताई। आनन-फानन से पैर में रक्त का प्रवाह रोकने रस्सी से बांधा गया। इसके बाद पति ने तुरंत दिलमनी बाई को जशपुर के जिला अस्पताल में दाखिल कराया। सांप काटने के तत्काल बाद दिलमनी बाई ने जो हिम्मत से काम लिया और पति ने त्वरित उपचार हेतु अस्पताल पहुचांया, इसी का नतीजा था उसकी जान बच गई और दो दिन बाद अस्पताल से दिलमनी बाई को छुटटी मिल गई। जिला अस्पताल में दाखिल होने के बाद एन्टीवेनम देकर दिलमनी बाई को सुरक्षित बचा लिया गया।  अब दिलमनी बाई अपने बच्चों एवं परिवार के साथ है। इसके विपरीत ग्राम बंगुरकेला,कुनकुरी की रिझनी बाई को भी सांप ने काटा था। विलंब से उपचार की वजह से उसकी मौत हो गई। अब वह दुनिया में नही है। चूंकि बरससात का समय है और इन दिनों सांप काटने की घटनाएं जशपुर जिले के अधिकांश वनांचल गांवों में होती रहती है। ऐसे में यदि आपके आसपास किसी को कोई सांप काट ले तो घबराने और झाड़फूंक के लिये किसी बैगा गुनिया के पास जाने की जरूरत नही है। नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र में जाकर त्वरित उपचार कराया जा सकता है। सांप काटने पर त्वरित और सही उपचार ही बचाव है।   
      वैसे तो जशपुर जिला के तपकरा, फरसाबहार को नागलोक कहा जाता है। लेकिन पूरे जशपुर जिले में करैत सहित अन्य विषैले सर्प का निवास है। ऐसे में रात के अंधेरे में घर पर या खेतों में काम करते हुये सांप काटने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। विगत दस साल का रिकार्ड देखे तो जशुपर जिले में वर्ष 2009 से अब तक 2603 लोग सर्पदंश का शिकार हो चुके है। पिछले तीन वर्षों में सबसे अधिक सांप काटने की घटना हुई। वर्ष 2015 में 275, वर्ष 201़6 में 256, वर्ष 2017 में 340, वर्ष 2018 में 292 लोगों को सांप ने काटा है। इस साल जुलाई माह तक 179 लोग सर्पदंश का शिकार हुये। हालांकि सर्पदंश पीडित दिलमनी बाई की तरह बहुत से लोग सांप काटने के बाद आसपास के अस्पताल में जाने के पश्चात जान गंवाने से बच गये। विगत दस साल में 146 लोगों की मौत सांप काटने से हुई है। इस वर्ष 2019 में जुलाई माह तक 8 सर्पदंश पीडितों की मौत हो चुकी है। जनवरी से जुलाई माह तक फरसाबहार ब्लाक में 57, पत्थलगांव में 46,बगीचा में 38, जशपुर में 13 सर्पदंश के मामले सामने आये है। जबकि जुलाई माह में ही 70 और जून माह में 64 सर्पदंश के मामलें सामने आये।
सांप के काटने के लक्षण 
जहरीले सर्प के काटने पर शरीर पर दांतों के दो निशान अलग ही दिखाई देते हैं। गैर विषैले सांप के काटने पर दो से ज्यादा निशान होते है। लेकिन निशान न दिखे तो सांप ने नहीं काटा है, ऐसा सोचना खतरनाक साबित हो सकता है। सर्पदंश का असर शरीर के तंत्रिका पर पड़ता है। विष से आंखों की पलकें भारी होने लगती हैं। अधिकांश सर्पदंश की घटनाओं में यह पहला लक्षण होता है। इसलिए नींद आना सबसे पहला लक्षण होता है। निगलने और सांस लेने में मुश्किल होने लगती है। अगर डंक जहरीला हो तब असर कुछ मिनटों में दिखाई देना शुरु हो सकता है। मसूड़ों से खून आना आम लक्षण है जोकि करीब 90 प्रतिशत मामलों में दिखाई देता है। विष का हृदय में पहुचने पर तुरंत दिल पर असर होता है। इससे हार्ट फेल होकर कुछ ही मिनटों में मृत्यु हो जाती है। सभी तरह के सांप के काटने में गंभीर ऊतक क्षति (ऊतकों की मौत) होने की संभावना होती है। यह विष शरीर की कोशिकाओं को बड़ा नुकसान पहुँचाते हैं। एक या दो दिनों में गंभीर सूजन, दर्द, खून बहने, और त्वचा का काला पड़ना आदि प्रभाव दिख सकता हैं। ऐसे घाव में अल्सर भी हो जाता है और इसके ठीक होने में कई सप्ताह लग सकते हैं। नियमित रूप से घाव की देखभाल करने और प्रति जीवाणु दवाएँ देने से फायदा होता है। 
बैगा-गुनिया के पास ले जाने से बचे
सर्पदंश के बाद अनेक लोग इलाज के लिए अस्पताल न जाकर झांड फूंक और बैगा-गुनिया के पास चले जाते है। इन पर अपना समय व्यर्थ गंवाने से मरीज के शरीर में सांप का जहर और भी फैलने की संभावना बन जाती है। इससे खतरा बना रहता है। कुछ लोग एक खास तरह के पत्थर का इस्तेमाल करते हैं जिसे सांप पत्थर कहा जाता है। इससे कोई फायदा नहीं होता। बहुत से मामलों में विषैला सांप नही होने पर भी डर की वजह से हार्ट अटैक,ब्लडप्रेशर बढ़ने से भी मौत हो जाती है। कई सांप जहरीले नहीं होते, इसलिए ज्यादातर लोग तो वैसे भी ठीक हो जाते हैं। सांप के काटने पर किसी भी तरह का झाड़फूंक, जादुई इलाज विश्वसनीय नहीं होता। अनेक सपेरों की मौत सांप के काटने से हो चुकी है। 
सर्पदंश पीड़ित को दिलासा दिलाएं और घटना का तथ्य जाने
सांप काटने के बाद गीले कपडे़ से डंक की जगह की चमड़ी को साफ कर लेवे। पोछने से सांप का वहॉं पडा विष निकाला जाएगा। घायल व्यक्ति को करवट पर सुलाएँ, जिससे उल्टी हो तब भी श्वसन-तंत्र में न चली जाएँ। शरीर के हिलने डूलने से बचने के लिये हाथ, पैर जहा सांप का डंक हो एक रस्सी या कपड़े का परचाली बांध दें, शरीर को इस तरह रखे कि शरीर में डंक वाले भाग को हृदय की अपेक्षा नीचे के स्तर पर रखे ताकि उस भाग में रक्त संचरण कम हो जाये। अगर काटने में जहर हो तो उसके लक्षणों की भी जॉंच करें। अक्सर जिस सांप ने काटा है वो नुकसान रहित होता है। काटी हुई जगह पर कट न लगाएं। दबा कर जहर निकालने के लिए पहले ऐसा किया जाता था। यह तरीका काम तो करता नहीं है पर इससे काटे हुए स्थान पर संक्रमण होने की संभावना जरूर बढ़ जाती ह

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