युद्ध जब आसन्न हो, अवश्यम्भावी हो
अपरिहार्य हो
क्या करे वह जो करता केवल मानवता का विचार हो !
कहते हों धर्मग्रंथ सब
युद्धकर ,युद्ध कर,युद्ध कर !
क्या करे अर्जुन जब
वीरता के साथ जीवन का भी विचार हो
कृष्ण न हो कोई
युयुत्सु होने का भी न किसी को अधिकार हो
गुस्से से ज्यादा क्षोभ हो
घना अंधकार हो और
केवल एक किरण हो
रण हो,रण हो,रण हो !
पेशेवर हों सेनाएँ, सत्तालिप्सु नेतृत्व
आमजन विवेकशून्य,जोशीले रणनीतिकार
सारे समीकरण केवल एक सूत्र का करें प्रतिपादन
भले जाएं मर, करेंगे लेकिन
समर,समर,समर !
देश हो गाँधी का
समाज सुभाषचंद्र बोस-सा
कहता हो जो चिल्लाकर
टूट जाएं भले,
झुकना मत पसंद कर !
राजेश निरव जी के फेसबुक वॉल से