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संविधान को ऐसे पढ़ाए सरकार : कनक तिवारी

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देश को केंद्र सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए। अनुच्छेद 370, राममंदिर, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन अधिनियम वगैरह से उपजी बहस में सरकार के विरोध के बवाल के चलते छात्रों, महिलाओं, श्रमिक संगठनों और राजनीतिक पार्टियों सहित बुद्धिजीवियों ने संविधान की पोथी और राष्ट्रीय ध्वज को अपनी जद्दोजहद का प्रतीक बना लिया है। वे इन्हें हाथ में लेकर ही विरोध दर्ज कर रहे हैं। संविधान का सौभाग्य है कि सत्तर वर्ष बाद उसकी अपनी ज़िल्द खोलने के लिए लोगो को बिल्ली के भाग से छींका टूटा जैसा मौका मिला। संविधान गंभीर समझ की कठिन किताब है। विदेशी भाषा अंगरेजी में लगभग तीन सौ न्यायशास्त्रियों, वकीलों, राजनेताओं, रियासतों और सामाजिक हितों के प्रतिनिधियों ने तीन वर्ष की मशक्कत के बाद 9 दिसंबर 1946 से 26 नवंबर 1949 की अवधि में संविधान को मुकम्मिल किया। उसकी भाषा कठिन, प्रांजल और शास्त्रीय है। उसका मर्म कई वकीलों और जजों में भी ठीक से जज़्ब नहीं होता है।

 

संविधान सभा ने समिति गठित कर आईन का हिंदी में तर्जुमा कराया। अध्यक्षता दुर्ग, छत्तीसगढ़ निवासी घनश्याम सिंह गुप्त ने की। दोबारा अनुवाद संशोधित किया गया। उसे आचार्य रघुवीर की अध्यक्षता की कमेटी ने किया। हिंदी अनुवाद तो अंग्रेजी पाठ से ज्यादा कठिन और गैरसंसूचनात्मक है। मातृभाषा हिन्दी में हृदयंगम करने की कोशिश में भावातिरेक, आत्ममुग्धता या अतिरिक्त आत्मविश्वास के कारण शब्दकोश को लोग नहीं देखते। नतीजा सिफर निकलता है। संविधान की पंडिताऊ किस्म की हिन्दी पल्ले नहीं पड़तीं। अनुर्वर शब्द किसी अज्ञात दीवार से टकराकर प्रतिध्वनि की तरह लौट लौट आते हैं।

 

संविधान दुनिया में सबसे बड़ा आख्यान है। उसमें करीब 90000 शब्द हैं। अमेरिका के संविधान में केवल 7000 शब्द हैं। संविधान सभा अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा था हिंदुस्तान बड़ा देश है। उसमें सबसे ज्यादा भाषाएं, बोलियां, प्रादेशिकताएं, जाति, धर्म हैं। यदि वह बड़ा भी बन गया, तो उससे देश को नुकसान नहीं होगा। इक्कीसवीं सदी के कानून के अधिकांश विद्यार्थी परीक्षोपयोगी नोट्स, गाइड और कुंजियां पढ़कर इम्तहान पास भर कर लेते हैं। कई अध्यापक इसी शिक्षा सामग्री का इस्तेमाल करते विद्यार्थी अपने को अगली कक्षा में धकेलते रहने का जतन कर लेते हैं। छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने और बड़े विश्वविद्यालय रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर में एलएल0एम0 की कक्षाएं पिछले चालीस, पैंतालीस साल से चल रही हैं। हर साल चालीस विद्यार्थी भर्ती हो सकते हैं। जानकारी है बमुश्किल दो या तीन विद्यार्थी हर साल परीक्षा पास कर पाते हैं। इस ओर सरकार का ध्यान नहीं गया होगा। विधि के विद्यार्थियों के लिए पुस्तकालय में अच्छी पुस्तकों का अभाव है। एक पूर्व कुलपति ने तो यहां तक कह दिया था कि एल0एल0 एम0 की पढ़ाई की हालत देखते इस पाठ्यक्रम को ही बंद कर दिए जाने के पक्ष में हूं। यह है एक कुलपति की कानून की उच्च शिक्षा के बारे में धारणा!

 

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ बीमारू राज्यों के घटक हैं। यहां उच्च शिक्षा की हालत बहुत खराब है। सरकारों ने उच्च शिक्षा के मानदंड और स्तर को उठाने ठोस प्रयास नहीं किए। दोनों प्रदेशों में आदिवासियों, दलितों और पिछड़े वर्गों का बहुलांश है। दोनों राज्यों में विद्यार्थियों को संविधान पढ़ाया जाना दिलचस्प, चुनौतीपूर्ण, मनोरंजक और जद्दोजहद की कल्पना भी दिखाई पड़ती है। संविधान का अध्यापन राजनीति विज्ञान और कानून के अध्यापकों द्वारा ही हो सकता है। राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक संविधान में रोज रोज हो रहे संशोधनों, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और अन्य बदलावों के बारे में जानकारी नहीं रख सकते। उन्हें राजनीति विज्ञान की मूल अवधारणा को ही पढ़ना पढ़ाना होता हैं। कानून के अधिकांश अध्यापक पेशेवर वकील ही पढ़ाने जाते हैं। उनका जिला स्तर पर संविधान से पाला नहीं पड़ता।

 

सरकारों को समझना होगा गांधी ने तजबीज की थी कि मूल कर्तव्य सबके लिए लागू किए जाएं। जो मूल कर्तव्य का निर्वाह नहीं करें उन्हें मूल अधिकार का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसी के चलते प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व ने 1977 में संविधान के बयालीसवें संशोधन में अनुच्छेद 51क के जरिए मूल कर्तव्य शामिल किए। इन मूल कर्तव्यों का प्रारूप बनाकर विद्यार्थियों और जनता में वितरित किया जाए, तो उससे ज्यादा लाभ होगा। संविधान की उद्देशिका का कोरा वाचन या पाठ बहुत फलदायी नहीं होगा। संविधान की अनुसूची 3 में मंत्रियों के लिए पद और गोपनीयता की शपथ का प्रारूप है। प्रत्येक वर्ष संविधान दिवस अर्थात 26 जनवरी को मंत्रिपरिषद के सदस्य शपथ पत्र का प्रारूप बनकर राज्य की जनता के सामने शपथ लें कि जो कुछ उन्होंने पद और गोपनीयता की शपथ ली है, उस पर वे आचरण कर रहे हैं। संविधान के प्रति उनकी निष्ठा का एक प्रदर्शन जनता के सामने हो सकेगा।

 

महत्वपूर्ण फिल्म निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल ने संविधान सभा की कार्यवाही पर आधारित धारावाहिक सीरियल “संविधान बनाया है। सरकारों को चाहिए कि सीरियल को राज्य के सिनेमाघरों में विद्यार्थियों के लिए मुफ्त में प्रदर्शन कराएं।

 

प्रदेष शासन के सभी विभागों में आई0ए0एस0 अधिकारी सचिव नियुक्त होते हैं। केवल विधि विभाग के सचिव पद पर जिला न्यायाधीश स्तर के अधिकारी को प्रतिस्थापित किया जाता है। जिला न्यायलय के स्तर पर संविधान का उपयोग लगभग नहीं होता है। राज्य सरकार के सामने अधिकतर संविधान के मामले ही आते हैं। विधि सचिव राय देता है जो अंततः आगे ठीक नहीं ठहरती। फिर उसे बाहर से बुलाए वकीलों के हवाले मोटी फीस देकर ठीक करने की असफल कोशिशें की जाती हैं।

 

मोदी सरकार जिसे राष्ट्रवाद कहती है, उसे विरोधी हिंदुत्व प्रचार कहते हैं। संसद में अभी जो अधिनियम पारित हो रहे हैं, उनकी प्रतिक्रिया में राष्ट्रीय ध्वज और संविधान के पक्ष में माहौल बना है। सबको संविधान पढ़ने की इच्छा हो गई है। शाहीन बाग में बुर्कापरस्त औरतों के हाथ में भी आईन की किताब है। जामिया मिलिया, जे0एन0यू0, अलीगढ़ से लेकर देश के सभी विश्वविद्यालयों के छात्र संविधान की पोथी के आधार पर आजादी का नारा बुलंद कर रहे हैं। संविधान के कवर पेज की फोटो उनके कपड़ों में छाती और पीठ पर लग गई है। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आती है। वे संविधान की किताब और तिरंगे झंडे को हाथ में बचाव की मुद्रा में ले लेते हैं।

रायगढ़ के एक युवक ने कुछ वर्षों पहले मीडिया के माध्यम से मांग की थी भारत सरकार देश के नागरिकों को संविधान की एक एक प्रति मुफ्त में मुहैया कराए। सरकार न तो ऐसा कर सकती थी और न ही उसने किया। नवयुवक की भारत के नागरिकों में संविधान को समझने पढ़ने की ललक के चलते मांग करना बहुत ही मुनासिब था। संविधान के जिन प्रावधानों को राज्य सरकारें समझती हैं कि छात्रों को समझ लेना चाहिए और नागरिकों को भी,उनकी संक्षिप्त सरल भाषा में पुस्तिका बनाकर प्रकाशित करें और जनता और विद्यार्थियों में मुफ्त में वितरित करें । पाठ्यक्रम में भी संविधान का ऐसा पाठ निर्धारित करें। संविधान के मूल अधिकार, नीति निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य यह तीन परिच्छेद सबसे महत्वपूर्ण हैं। इनमें जिन विषयों का वर्णन किया गया है, उनसे संबंधित मंत्रालयों और सचिवों के कक्ष में उनका उल्लेख बड़े बड़े बोर्ड लगाकर इस तरह किया जाए कि लोग उन्हें आसानी से पढ़ सकें और उनसे चर्चा कर सकें।

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