आसमाँ में
क्या रखा है..,
इक आस बचा
रखा है,प्यास
गले की कहीं
छुपा रखा है
फूल की
पंखुड़ियों के
इर्द गिर्द
जीवन अधर
में लटकाए
रखा है
गर,फ़ूल न
रहे उनकी
महक न
रही तो
मैं आसमाँ
का रुख़
करूँगा खुदा
से पूछूँगा
क्यों उजाड़
हुआ है बाग़
वीरान हुआ
है जहाँ..,इंसा
ने काटे हैं
पेड़ उखाड़
दिये हैं बग़ीचे
बाज़ार में अब,
फूल बिकते हैं
फलों के फूटपाथ
सजते हैं
कैसे चुकाऊँ
मैं मोल इनका
मेरी झोली ख़ाली
है मीठी बोली
मेरी न्यारी है..,
खुदा तू तो
बिके हुए
फ़ूल स्वीकार
कर लेता है
पर,परिंदा
खुदा नहीं..,
कहे पंछी के,
खुदा तू मेरे
पर ले ले
मुझे मेरा
घोसला
लौटा दे
कटे हुए
पेड़ एक
बार फिर
से उगा दे
मुझे मेरा
जहाँ,लौटा दे..,
[नितिन राजीव सिन्हा]