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काव्य कलश: परिजात.., तुम यूँ ही खिली रहना टहनियों पर पड़ी रहना पर,...
परिजात..,
तुम यूँ ही
खिली रहना
टहनियों पर पड़ी
रहना पर,गिरो
तो जमीं पर
गिर कर बिछौना
नर्म बन जाना..,
गर,बिछौना
बन गये तो
सेज बन जाना
किसी सुहागन
की अँगड़ाइयों
का क़िस्सा बन
जाना..,ज़िंदगी
जिनके हिस्से है
उस हिस्से का
तुम अफ़साना
बन जाना..,
महक उठना
जब कोई छू
ले,अहिस्ता
से घूँघट में
मुखड़ा छुपा
लेना,इक
दुल्हन की
तरह सज
कर,तुम
साजन के हाथों
में आ जाना
गर,
छूट गये हाथ
तो बाँहों में
हौले से आ
जाना,परिजात
तुम ख़यालों
में आना और
महक बिखेर कर
वापस लौट जाना
अल्हड़ सौंदर्य हो
तुम,चंद्रमा
की शीतल छाँह
तले ख़ुश्बू से
भरी इक बगिया
सज़ा जाना..,
रात भर चंद्रमा
को अपने श्वेत
धवल बिछौने
पर शुकूँ के
दो पल दे
जाना..,
बन दुल्हन
तुम परिजात
चंद्रमा की बाँहों
में मचल जाना..,
[नितिन राजीव सिन्हा]