संवाददाता सुधीर चौहान की रिपोर्ट
सरायपाली - किसी विद्वान् ने यह बात बिलकुल सत्य कही है कि मदिरापान सब बुराईयों की जड़ होती है। मदिरा मनुष्य को असंतुलित बनाती है। शराबी व्यक्ति से किसी भी समाज की बुराई की अपेक्षा की जा सकती है। इसी कारण से हमारे शास्त्रों में मदिरापान को पाप माना जाता है।
बसंती बाघे ने बताया कि शुरू में तो व्यक्ति शौक के तौर पर नशा करती है। उसके दोस्त उसे मुफ्त में शराब पिलाते हैं। कुछ लोग ये बहाना बनाते हैं कि वे थोड़ी-थोड़ी दवाई की तरह शराब को लेते हैं लेकिन बाद में उन्हें लत पड़ जाती है। जिन लोगों को शराब पीने की आदत पड़ जाती है उनकी शराब की आदत फिर कभी भी नहीं छूटती।
शराबी व्यक्ति शराब को पीकर विवेकशून्य हो जाता है और बेकार, असंगत और अनिर्गल प्रलाप करने लगता है। उसकी चेष्टाओं में अशलीलता का समावेश होने लगता है। वह शिक्षा, सभ्यता, संस्कार और सामाजिक मर्यादा को तोडकर अनुचित व्यवहार करने लगता है। गाली-गलोंच और मारपीट उसके लिए आम बात हो जाती है।
बाघे ने बताया कि नशे की लत से हमने बड़े-बड़े घरों को उजड़ते हुए देखा है।
जिस पैसे को व्यक्ति खून-पसीना एक करके सुबह से लेकर शाम तक कमाता है जिसके इंतजार में पत्नी और बच्चे बैठे होते हैं वह नशे की हालत में लडखडाता हुआ घर पहुंचता है। पड़ोसी उसे देखकर उसका मजाक उड़ाते हैं, मोहल्ले वाले उसकी बुराई करते हैं लेकिन बेचारी पत्नी कुछ नहीं कह पाती है। वह केवल एक बात से डरती रहती है कि उसका शराबी पति उसे आकर बहुत पीटेगा। इसलिए वह बेचारी दिल पर पत्थर रखकर जीवन को गुजार देती है।
बसंती बाघे ने बताया कि आर्थिक संकट होने की वजह से वह घटिया शराब पीने लगता है। शराब वाले भी ज्यादा पैसे कमाने के लिए शराब में मिलावट कर देते है। इस तरह की मिलावटी शराब हजारों की जान ले चुकी है तब भी यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हुई है।