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रतलाम: देशभर में ‘चौरानी पान’ की अपनी अलग ही पहचान है, यह खाने में जितना स्वादिष्ट है, इसकी खेती उतनी ही मेहनत वाली,

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भरत शर्मा रतलाम

आज का दिन न्यूज पोर्टल रतलाम : मालवा माटी गहन गंभीर, डग-डग रोटी-पग-पग नीर’’ की कहावत को सार्थक करने वाले मालवांचल की आबोहवा, जलवायु और ज़मीन की उर्वरा शक्ति अद्भुत है। इस अंचल में उत्पादित होने वाली कई चीजे़ दूसरे स्थानों पर उत्पादित नहीं की जा सकती है। यदि कहीं अन्य स्थान पर ऐसे प्रसास किए भी जाते हैं तो यहाँ जैसी मिठास उसमें नहीं आ पाती है। मालवा अंचल का हृदय रतलाम जिला ऐसी ही कई निराली एवं महत्वपूर्ण चीज़ो के लिए जाना जाता है। ‘चौरानी पान’ भी उसी में से एक है।

देशभर में ‘चौरानी पान’ की अपनी अलग ही पहचान है। यह कम लोगों को पता है कि यह चौरानी पान रतलाम जिले में ही उत्पादित होता है। रतलाम जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है ग्राम चौराना। चौराना के समीप ही है ग्राम चौरानी। ये दोनों गाँव पान की खेती के लिए मशहूर हैं। यहाँ पैदा किया जाने वाला पान इसी स्थान के नाम के कारण ‘चौरानी पान’ कहा जाता है। न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश में तो चौरानी पान की अपनी पहचान है ही, विदेशों तक के लोग चौरानी पान के स्वाद को याद करते हैं। चौरानी पान में मालवा माटी की गहनता भी है और यहाँ की मिलनसारिता का स्वाद भी। यही कारण है कि इस पान की माँग सदा बनी रहती है। चौरानी पान की तासीर अन्य पानों की अपेक्षा काफी श्रेष्ठ रहती है।

कड़कपन है इसकी खासियत

दिखने में चौरानी पान पापड़ की तरह कड़क होता है। यदि इसे मोड़ा जाए तो यह टूट जाता है। इसका यही कड़कपन इसकी खासियत है। इसके कड़क होने से यह ठण्डक देने वाला होता है। चौरानी पान को ग्रीष्म ऋतु में खासतौर से खाया जाता है। अन्य पानों की तरह यह एकदम खत्म नहीं होता। इसे चबाया जाए तो यह मुँह में घूमता रहता है और इसी कारण यह शरीर में ठण्डेपन का आभास करता है।

कड़ी मेहनत और लगन

रतलाम जिले के चौरानी पान के साथ भी एक इतिहास जुड़ा हुआ है। इस पान की शुरुआत के बारे में कृषक बगदीराम चौरसिया बताते हैं कि चौरानी के नाम से पान की प्रसिद्धी नई नहीं है। करीब 50 वर्षों से स्वयं पान की खेती कर रहे श्री चौरसिया कहते हैं कि शुरुआत में प्रयोग के तौर पर पान की खेती की गई। पान को यहाँ का वातावरण रास आया और काफी अच्छी फसल पैदा होने लगी। धीरे-धीरे गाँव के अन्य लोग भी पान की खेती के प्रति आकर्षित हुए और देखते ही देखते 10 बीघा क्षेत्र में पान की खेती होने लगी। क्षेत्र के एक सौ से अधिक लोग पान की खेती करने लगे। समय के साथ चौरानी के पान की काफी पसंद किया जाने लगा। यह पान मालवा से आगे निकलकर राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली तथा और आगे जाने लगा। पान की खेती का रकबा धीरे-धीरे बढ़ता गया मग़र अन्य फसलों से अधिक आय के लुभावने प्रस्तावों का पान की खेती पर असर पड़ा है। कभी गाँव में 22 परिवार पान की खेती से जुड़े थे मगर समय के साथ इनकी संख्या में कमी आ रही है। मौसम और मजबूरियों ने पनवाडियों की रौनक ज़रूर कम की है मगर अब भी किसानों में हौंसला कायम है और इस पान का नाम कायम रखने में ये जुटे हुए हैं।

सुरक्षा और सतर्कता पान की खेती की पहली शर्त

यह पान खाने में जितना स्वादिष्ट लगता है, इसकी खेती उतनी ही मेहनत वाली होती है। सुरक्षा और सतर्कता पान की खेती की पहली शर्त है। खेत में पान की कलम चैत्र माह में लगाई जाती है। भारतीय नववर्ष की शुरुआत के साथ इसकी शुरुआत होती है और कलम लगाने के बाद लगभग चार माह में फसल आना प्रारंभ हो जाती है। इस फसल को अलसी की खाल, मॅूंगफली की खाल, दही, अलसी तेल खाद के रूप में दिया जाता है। यह खाद कम या अधिक होने पर फसल बर्बाद होने का खतरा भी रहता है। इसलिए सही समय पर सही खाद-पानी देना, पान की बेल को बाँस के माध्यम से व्यवस्थित रखना आवश्यक होता है। धूप से बचाने के लिए सेटनेट लगाई जाती है। कड़ी मेहनत से यह फसल तैयार हो पाती है।

पड़ौसी देशों में भी इसकी मांग

चौरानी पान की गुणवत्ता अन्य पानों से श्रेष्ठ इसीलिए मानी जाती है कि इसमें मालवा के जलवायु की मिठास धुली होती है। पान व्यवसाय से जुड़े रहे कमल किशोर बताते है कि चौरानी पान सभी को पसंद आता है। सामान्यतः मीठा पत्ता, बनारसी, देशी, मद्रासी, कपूरी, फाफड़ा, तीरूर, लंका आदि किस्मों के पान उपलब्ध होते हैं और क्षेत्र के हिसाब से उपलब्ध हो पाते हैं। चौरानी पान मालवा क्षेत्र ही नहीं दिल्ली, मुम्बई, भोपाल आदि महानगरों में भी पसंद किया जाता है। पड़ौसी देशों में भी इस पान की मांग रहती है। व्यवस्थित मार्केटिंग और चौरानी पान उत्पादकों की समस्याओं की वजह से इस पान को देशभर में नहीं पहुँचा पा रहे हैं मग़र यह पान स्वादिष्ट पान के चहेतों का पसंदीदा पान हैं। हर तरह के पान खाने के शौकीनों के लिए यह पान पहली पसंद बना हुआ है। इसकी तासीर ठण्डी होने से ग्रीष्म के मौसम में तो चौरानी पान की काफी माँग बनी रहती है। इस पान को चबाने के दौरान और चबाने के बाद बची लुगदी को मुँह में घुमाने से ठण्डक महसूस होती है। इतना ही नहीं चौरानी पान की पनवाड़ी में से गुजरा जाए तो ग्रीष्म में भी ठण्डक का आभास होता है।

सेहत के लिए बेहतर

औषधीय रूप से भी पान के सेवन को श्रेष्ठ माना गया है। भोजन के उपरांत पान सेवन से पाचन की प्रक्रिया बेहतर होती है। मुक शुद्धि का कार्य तो पान करता ही है साथ ही सेवन से गले में खराश दूर होती है और ऊर्जा प्राप्ति का लाभ भी होता है। आयुर्वेद में पान की महत्ता को प्रतिपादित भी किया है। वैद्य रत्नदीप निगम बताते है कि – पान के रूप में जिसे हम पहचानते है एवं सेवन करते है उसका वास्तविक हिन्दी नाम ‘‘नागरबेल’’ तथा ‘‘ताम्बूल’’ है। इसे संस्कृत में ‘‘पर्णवल्ली’’ तथा ‘‘ताम्बूल वल्ली’’ कहा जाता है। जैसा कि इसके नाम से विदित है यह एक बेल प्रजाति है जिसे लकड़ी अथवा बॉस के मण्डप पर चढ़ाया जाता है। सामान्यतः बेल 15-20 फीट लम्बी एवं बहुवर्शायु होती र्है। औषधि रूप में नागरबेल के पान (पत्ते) तथा जड़ का ही उपयोग होता है। पान (नागरबेल) में प्रधान रस चरपरा है अर्थात् कड़वा,मधुर, लवण, कसैला रस का मिश्रण है। उष्ण (गर्म) प्रकृति का होने से पित्त की वृद्धि करता है परंतु कफ एवं वात शामक है। इसमें एक प्रकार की सुगंध अवस्थित होती है। इसके पान में उड़नशील तैल तथा फिनॉल पाया जाता है। नागर बेल उत्तम दीपन-पाचन है, श्लेष्महन अर्थात् कफ को शमन करने वाला, सूजन दूर करने वाला, वेदनाशामक और व्रणरोपक है। इसका उपयोग मुख की दुर्गन्ध को दूर करने में, अपचन, उदरशूल (पेट दर्द) में भी होता है। नागरबेल श्वास रोग, कीटाणु नाशक एवं यकृतोत्तेजक अर्थात् यकृत पित्त का स्त्राव कराने वाला होता है। यह अत्यंत कामोत्तेजक भी होता है।

दुर्बल, कृशकाय मनुष्य को नागरबेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। ज्वर (बुखार) की अवस्था में, रक्तपित्त एवं क्षय में इसका उपयोग निषेध है। अत्याधिक मात्रा में सेवन करने पर यह नेत्र दृष्टि, केश, दाँत, श्रवणशक्ति, वर्ण एवं बल के लिए हानिकारक होता है। कभी-कभी यह मूर्च्छा भी ला देता है। अपनी खासियत के कारण हजारो लबों की शान बना हुआ चौरानी पान आज भी अपनी पहचान बनाए हुए है। इसकी अस्मिता को बचाए रखने के लिए चौरानी पान अपने शौकीनों की तरफ उम्मीद भरी नज़र से देख रहा है।

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