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आदिवासी मुख्यमंत्री की संभावना के बारे में सुनने भर से छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में क्यों होने लगती है लोगों के पेट में दर्द....,

आदिवासी मुख्यमंत्री की संभावना के बारे में सुनने भर से छत्तीसगढ-मध्य प्रदेश में कई लोगों को बेचैनी होने लगती है| अलग-अलग दुष्प्रचार से 1980 से आज तक कई बार कांग्रेस-भाजपा दोनों दलों में आदिवासी मुख्यमंत्री बनने से रोका गया है| 2023 के विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद भी ऐसे दबाव-समूहों की भ्रम फ़ैलाने की कोशिशें जारी हैं| भूपेश बघेल ने कुर्मी-साहू-ओबीसी राजनीति का जो मकड़जाल बुना उसमें पांच सालों तक भाजपा भी उलझती रही| आदिवासी आरक्षण पर जब हाई कोर्ट के सितंबर 2022 के फ़ैसले से आघात लगा तो भाजपा की ओबीसी लॉबी ने राजनीतिक फ़ायदा उठाते हुए भी किसी भी हल के निकलने को बाधित रखा| एमबीबीएस की 110 और एचएनएलयू की 10 एसटी आरक्षित सीटों का ऐतिहासिक नुकसान होने तक पर भाजपा ने कोई प्रदर्शन और प्रेस-वार्ता नहीं की| तत्कालीन आदिवासी महिला राज्यपाल को पहले आरक्षण संशोधन विधेयकों पर सम्मति देने से रोक दिया गया और फ़िर जनता के गुस्से का ठीकरा उनके सर फ़ोड़ कर उनको यहां से उत्तर-पूर्व रवाना कर दिया गया| 

जुलाई 2023 में एक बुलंद गैर-आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता ने घोषणा की कि 15 दिसंबर को छग का मुख्यमंत्री एक आदिवासी होगा; चाहे उसका नाम दीपक बैज हो या रेणुका सिंह| इस दावे का मजाक उड़ाते हुए इसे सिरे से खरिज करने की कोशिश की गई| भाजपा के जनजाति मोर्चा अध्यक्ष ने खुद के खर्चे पर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की परियोजना के लिए रोमानेस्क विलाज कॉलोनी, लभांडीह में एक वॉर रूम ऑफ़िस खोला| किसी गोंड़ महिला को भाजपा में नेतृत्व दिए जाने की पैरवी करते हुए एक स्वॉट एनालिसिस पेपर जुलाई में ही प्रसारित हुआ| बताया जाता है कि इसी एनालिसिस से प्रभावित होकर रमन सिंह ने पार्टी नेतृत्व से मनुहार कर लता उसेंडी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनवाया| यह आदिवासी चेतना वॉर ऑफ़िस 1 अक्टूबर को आर्थिक तंगी से बंद करना पड़ा| लेकिन तब तक पूरे सरगुजा और तकरीबन बस्तर तक आदिवासी राजनीतिक नेतृत्व को कुचल देने की व्यापक साजिश के खिलाफ़ चेतना फ़ैल गयी थी|

रेणुका सिंह पर प्रधानमंत्री जी का ध्यान जा सकता है इस संभावना देखते हुए उनकी राजनीतिक हत्या के इरादे से भरतपुर-सोनहत जैसी खतरनाक सीट पर उनको चुनाव लड़ाया गया| लेकिन 2005, 2013 की ही तरह इस बार भी रेणुका सिंह चुनौती से लड़कर दमकती हुई उभरी| ओबीसी लॉबी ने यह खबर जोर से उड़ायी कि भाजपा की जीत की वजह साहू समाज का एक तरफ़ा भाजपा के पक्ष में मतदान करना है| महतारी वंदन की घोषणा से महिला मतदान बढने का प्रचार भी इसी दुष्प्रचार का हिस्सा था| आदिवासी आरक्षण और तेंदू-पत्ता मामले में हुए अन्याय के प्रभाव को छुपाने की भी कोशिश हुई| रेणुका सिंह ने चुपचाप बस आगामी प्रशासन की नीतियों और कार्य-योजना पर काम जारी रखा| 

अब भाजपा नेतृत्व को अच्छी तरह मालूम है कि अगर आदिवासी नेतृत्व, खास तौर पर गोंड़ नेतृत्व, को टाला गया तो लोक सभा चुनाव में तत्काल खामियाजा उठाना पड़ सकता है| रमन सिंह 2013 का विधानसभा चुनाव भारी मुश्किल से सतनाम सेना के अपने दांव के कारण बचा पाए थे और फ़िर भाजपा को भयानक हार का मुंह 2018 में देखना पड़ा| इन तथ्यों के साथ 2023 में विधानसभा चुनाव के क्षेत्र-वार मतदान पैटर्न को देखते हुए भाजपा नेतृत्व भारी खतरे से वाकिफ़ है| अगर लोकसभा चुनाव आज हो जाएं तो भाजपा राजनांदगांव, दुर्ग, कांकेर, जांजगीर-चांपा की सीटें हार जाएगी| यही नहीं, कोरबा, सरगुजा, रायगढ, बस्तर सीटें भी खतरे से पूरी तरह बाहर नहीं हैं, जबकि बिलासपुर, रायपुर और महासमुंद सीटें भाजपा के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं| ध्यान रहे कि 1999 के लोकसभा चुनावों से अब तक भाजपा ने छग में दो से ज्यादा सीटें कभी नहीं गंवाई हैं| ऐसे में दबाव-समूह जैसी चाहे कोशिश कर लें लेकिन भाजपा के सबसे बेहतरीन ऑप्शन एक महिला, आदिवासी, गोंड़, अनुसूचित क्षेत्र प्रतिनिधि रेणुका सिंह ही हैं| सामाजिक न्याय, महिला कल्याण, पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय रोजगार, भू-माफ़िया नियंत्रण से नक्सल-निजात और साहसी प्रशासनिक सुधारों का रेणुका सिंह का एजेंडा अभी ही छन-छन कर जाहिर हो रहा है| ऐसे में आदिवासी और दलित प्रवर्गों के एकसार समर्थन के अलावा अनारक्षित और ओबीसी प्रवर्गों के पिछड़े हिस्सों में भी रेणुका सिंह के छग मुख्यमंत्री बनने की खबर से भारी उत्साह है|

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