नितिन राजीव सिन्हा
नगरिकता संशोधन बिल के मूल तथ्य इतनी जल्दी आम जन तक पहुँच गये ?लोग ड्राफ़्ट पढ़ भी लिये और हिंसा पर उतारु भी हो गये हिंसा की व्यापकता का संज्ञान समय से पूर्व ले लिया गया सेना की टुकड़ियाँ पूर्वोत्तर पहुँचा दी गई इंटरनेट सेवाएँ सरकार ने बाधित कर दी,सब सुरक्षा मानकों को सुनिश्चत पहले किया गया ताकि हिंसक लोगों को नियंत्रित किया जाये,उक्त समूचा घटनाक्रम आश्चर्यजनक है..,
झारखंड चुनाव के ठीक पहले के इस क़वायद ने भौचक कर दिया चुनाव के भाषणों की स्क्रिप्ट बदल गई मोदी सरकार की विफलता,रघुवर सरकार के घोर भ्रष्टाचार पर हो रही चर्चाएँ थम गई..,
ऐन चुनाव के समय राष्ट्र का अराजक हो जाना या पुलवामा का हो जाना महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है इस पर राष्ट्र को मंथन करना चाहिये और राजनीतिक लाभ हानि के गणित को समझ कर सुझबुझ से निर्णय लेना चाहिये आज से पाँच साल पहले लगता था कि लोकतंत्र परिपक्व हुआ है अब,लगता है के इसका पुनर्जन्म हुआ है अभी शैशव काल का आरंभ हुआ है..,
आशा के केंद्र में पुनः ५६” का सीना है भूख की लूट तब होती है जब भय प्रबल होता है यह वह दौर है जबकि हिंसा की जद में देश तब पहुँच गया है जबकि उस क़ानून के तथ्य पढ़े लिखे वकीलों तक भी नहीं पहुँच सके हैं और कौवा कान ले गया वाली दशा विद्यमान हुई है असम में तीन मौतें हुई हैं जनजीवन असमान्य हुआ है..,
दिनकर ने अहिंसा के पुजारी गांधी की दशा पर वर्षों पहले लिखा था वह परिदृश्य अब भी प्रासंगिक बना हुआ है के,
तू चला तो
लोग चौंक
पड़े’तूफ़ान
उठा या आँधी
है?’ईसा की
बोली रूह
अरे,यह तो
बेचारा गाँधी है..,