नितिन राजीव सिन्हा
आरएसएस,सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणाओं पर क्रिया करती है वह अखंड भारत की कल्पना करती है पर,मोदी सरकार जिस नगरिकता संशोधन बिल को संसद के दोनों सदन से पारित करवा चुकी है वह तो धर्म आधरित अवधारणा है इसमें अखंड भारत की परिकल्पना के आधार और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चेतना को ही खूँटी पर टाँग दिया गया है परिदृश्य मुस्लिम लीग के द्वी राष्ट्र के सिद्धांत,उसके व्यवहार रूप की प्रचण्डता की पुष्टि करता हुआ ही दिखाई पड़ता है..,
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो सदन में कहा है वह गंभीर बात है के,भारतीय मुसलमान को डरने की ज़रूरत नहीं है लेकिन पाकिस्तान,अफ़ग़ान,बंगलादेश के मुस्लिम शरणार्थियों को नगरिकता नहीं दी जा सकती,देश का धर्म आधरित बँटवारा नहीं होता तो यह बिल लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती..,
मतलब साफ़ है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का भ्रम अब टूट गया है,अखंड भारत का स्वप्न काल कवलित हुआ है यानि संघ की अवधारणाओं को विसर्जित करने का यह सबसे बेहतर काल और खंड है..,
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा कहते हैं कि आज गांधी होते तो दुःखी होते पर,प्रश्न तो यही है के,आज गांधी क्यों होते..?
दुःख तो आरएसएस के लोगों का बढ़ा है के,उनका वैचारिक आधार खिसका है असम से हिंसा की शुरुआत हुई है जिस पर सरकार के दायित्व को इंगित करते हुए नुसरत मेहंदी के लिखे हुए शब्दों पर विचार करना होगा कि-
फजा ए अमन
ओ,अमाँ को
सदा रखें क़ायम
सुनो ये फ़र्ज़
तुम्हारा भी है
हमारा भी..,