नितिन राजीव सिन्हा
नरेंद्र मोदी और सोनिया गांधी का नेतृत्व कसौटी पर कसे जाने का यह बेहतर दौर है जबकि महाराष्ट्र का मसला जीवंत है सरकार बनाने की क़वायद में भाजपा ने हर वह दाँव चला जिससे उसकी राजनीतिक प्रतिष्ठा धूमिल हो,जाने अंजाने में उसने संवैधानिक दायित्व के निर्वहन में भी चूक की मसलन एक बार राज्यपाल को कह दिया गया कि हम सरकार बनाने के लिये तैयार नहीं हैं हमारे पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है फिर हड़बड़ी में शपथ लिया जाना तो यही संकेत देता है कि मोदी का नेतृत्व अब चूक गया है..,
जबकि २०१४ में भाजपा को बहुमत साबित करने के दौरान सदन में ग़ैर कांग्रेस दल के विपक्ष की भूमिका कांग्रेस के ज़ेहन में थी सोनिया गांधी सत्ता की लूट में शामिल नहीं होना चाहती थी वे संवैधानिक प्रक्रिया के पालन करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहती थी लोकतंत्र के मूल्यों को बचाकर रखना चाहती थी इसलिये पूरे दौर में एनसीपी और शिवसेना ही आगे रहे कांग्रेस अपने दायरे से बाहर नहीं निकली..,
सरकार बन जाने की डगर तय हो इससे पहले ही सत्ता की लूट हो गई इस लूट में एनसीपी और भाजपा की मिलीभगत उजागर हो गई कांग्रेस सत्ता निरपेक्ष भूमिका में पूरे समय रही इसका सकारात्मक संदेश देश में गया कि सत्ता के व्यापार के दौर में कांग्रेस ने कारोबारी रिश्ते बनाने से इंकार कर दिया लिखना होगा कि सोनिया के क़दम नपे तुले थे वहीं मोदी के क़दम लड़खड़ाये हुए दिखे हैं जिस पर लिखना होगा कि-
बाज़ार से गुज़रा
हुआ कारवाँ हूँ
पर,ख़रीदार
नहीं हूँ
गुमान है
मेरा के,
ईमानदार सिर्फ़
मैं हूँ..सत्ता की
लूट का मैं
तलबगार नहीं
हूँ क़दम जो
लड़खड़ाये हैं
ये तो ख़ुमार हैं
पर,नशे में मैं
नहीं हूँ लड़खड़ाये
हैं गर,क़दम
तो मुझको यारों
माफ़ करना
मैं सत्ता का
तलबगार नहीं हूँ..,