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मीडिया की मस्ती के दौर में महाराष्ट्र में सत्ता लूट ली गई और किसी अख़बार की हेड लाइन,लुटेरी सियासत न बन सकी..,

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नितिन राजीव सिन्हा

महाराष्ट्र में जो हुआ वह बेहतर हुआ नरेंद्र मोदी और अमित शाह को इसके लिये शाबाशी दी जानी चाहिये कि रात के अंधेरे में चोर रास्ते से राज भवन तक सत्ता के सौदागर पहुँचते हैं सुबह सबेरे सत्ता लूट ले जाते हैं अख़बारों की हेड लाइन होनी चाहिये थी लुटेरों ने लोक तंत्र को लूट लिया पर,मीडिया के मस्ती के दौर में हेड लाइन बनाई गई के,एनसीपी की घड़ी से भाजपा का समय बदला(दैनिक नव भारत)इसी तरह से अन्य अख़बारों ने भी ख़ुशामदीद होने में ही अपनी भलाई समझी लेकिन प्रश्न तो यही है कि क्या लोकतंत्र के मूल्य इस तरह से सुरक्षित रह पाये हैं..,

हमारे प्रश्न अपनी जगह अडिग हैं और यह पाठकों के विचार के लिये हवा में छोड़ दिये गये हैं देखते हैं इसकी हवा निकलती है या ये हवा में गोते लगाते हुए आगे बढ़ते हैं..,

हम भाजपा की आलोचना नहीं करेंगे बल्कि उन्हें शाबाशी देंगे कि सत्ता के लिए लूट तंत्र का परवान चढ़ना बेहतर विकल्प है जिस पर लिखना होगा कि लोकतंत्र इसी लूट की कश्ती पर सवार हो कर किनारे तक पहुँचने की क़ाबिलियत रखती है मसलन कल जब यह लूट हुई तब किसी न्यूज़ चैनल पर बगुला मुखी मंदिर में देवेंद्र फड़नवीस के सपत्नीक किए गये किसी पूजन की कहानी दिखाई जा रही थी फिर एक प्रश्न खड़ा होता है”क्या मीडिया के मूल्य ध्वस्त हो चुके हैं कि वह अब प्रश्न खड़े करने से बचने लग गया है..?”शायद हाँ क्योंकि वह अब मंडी में खड़ी हुई वह अबला नारी है जिसकी आबरू लूट ली जा चुकी है वह हया पर से पर्दा उठाने पर अपनी आपत्ति दर्ज करने की नैतिक शक्ति खो चुकी है “इसलिये सरकार को वह साकार ब्रह्म मानकर मीरा बाई बन गई है..के,मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई..,मौजूदा प्रसंग पर बशीर बद्र की एक ‘कलाम प्रासंगिक बन पड़ती है कि-

जब सहर चुप हो

हँसा लो हमको

जब अंधेरा हो 

जला लो हमको

हम हक़ीक़त हैं

नज़र आते हैं

दास्तानों में

छुपा लो हमको..,

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