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शुकदेव भगवान आयुवृद्ध नहीं ज्ञानवृद्ध - स्वामी श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी

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प्रांजल शुक्ला

 

*श्री महामाया देवी मंदिर परिसर रायपुर में चल रहे श्रीमद्भागवत् ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तीसरे दिन परमपूज्य श्री जगद्गुरू निम्बार्काचार्य पीठाधिश्वर स्वंभूराम द्वाराचार्य "श्री राधामोहन शरण" देवाचार्य जी महराज (श्री राधा सर्वेश्वर संस्थान, श्री गिर्राज अन्नश्रेत्र, मथुरा) ने आज भागवत् कथा का आरंभ करते हुये श्री महामाया देवी मंदिर रायपुर के सरवराकार श्री आनंद शर्मा एवं ट्रस्टी सदस्यों के सहयोग से संकलित पुस्तक "श्री महामाया महात्म्य" का वर्णन करते हुये राजा मोरध्वज द्वारा श्री महामाया देवी के विग्रह को रायपुर की खारुन नदी से लाकर मंदिर में स्थापना, हैहयवंशी राजाओं द्वारा मंदिर का संरक्षण तथा मंदिर के वर्तमान स्वरूप की कोटि कोटि प्रशंसा करते हुये श्री महामाया मां की चरण वंदना की.*

*आज के भागवत् प्रसंग का आरंभ करते हुये महराज श्री ने द्वापर युग के पश्चात कलियुग आगमन एवं चक्रवर्ती सम्राट परीक्षित के जीवन चरित्र का वर्णन किया। स्वामी श्री राधामोहन शरण देवाचार्य जी ने इस कथा का सविस्तार उल्लेख करते हुये बताया की राजा परीक्षित एक दिन शिकार पर जा रहे थे इसी दौरान रास्ते में उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए हुए है और एक बैल और गाय को पीट रहा है। उस बैल के एक ही पैर थे। यह देख राजा परीक्षित क्रोधित हो गये और उस व्यक्ति से पूछा- 'तू कौन है जो इस तरह अत्याचार कर रहा है। तुझे ऐसे काम के लिए मृत्युदंड मिलना चाहिए राजा का क्रोध देख कलियुग उनके चरणों में गिर गया और क्षमा-याचना करने लगा।*

*राजा परीक्षित ने उसे माफ कर दिया लेकिन साथ ही वे यह भी समझ गये कि यह पूरी माया क्या है। दरअसल, वह जान गये कि एक पैर वाला बैल धर्म है और गाय के रूप में धरती मां हैं। साथ ही उन्हें ये भी ज्ञात हो गया कि यह कलियुग है। राजा परीक्षित ने कलियुग को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्होंने उसे इस कृत्य के लिए क्षमा तो कर दिया है लेकिन वह उनके राज्य की सीमा से बाहर चला जाए। इस पर कलियुग ने भगवान ब्रह्मा के नियम की दुहाई देते हुए कहा, 'महाराज आपका शासन पूरी धरती पर है ऐसे में मैं कहां जाऊं नियमों के अनुसार मुझे यहां रहना है ऐसे में आप ही कुछ उचित स्थान दें जहां मैं रह सकूं.*

*कलियुग के गिड़गिड़ाने पर राजा परीक्षित ने उसे रहने के धरती पर जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन और हिंसा जैसी चार जगहें दे दी, इस पर कलियुग ने प्रार्थना करते हुए कहा, 'ये सभी तो ऐसे स्थान है जहां बुरे व्यक्ति जाते हैं कोई एक ऐसा स्थान भी दीजिए जो अच्छा माना जाता है इस पर राजा ने उसे सोने (स्वर्ण) में रहने की अनुमति दे दी और शिकार के लिए आगे निकल गये, राजा परीक्षित यहां भूल गये कि उन्होंने स्वयं भी स्वर्ण मुकुट पहना है कलियुग को मौका मिल गया और वह सूक्ष्म रूप में राजा के ही सिर पर बैठ गया. राजा जब शिकार के लिए आगे बढ़े को उन्हें रास्ते में प्यास लगी वह पास में मौजूद शमिक ऋषि के आश्रम में गये और जल के लिए आवाज लगाई ऋषि शमिक उस समय ध्यान में लीन थे और ऐसे में उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया.*

*यहीं कलियुग ने अपना पहला असर दिखाया सिर पर कलियुग के बैठे होने की वजह से राजा परीक्षित को लगा कि ऋषि उनका अपमान कर रहे हैं। ऐसे में वह क्रधित हो गये उन्होंने ऋषि शामिक को परेशान करने के लिए एक मरा हुआ सांप उनके गले में डाल दिया उसी समय नदी से स्नान कर लौट रहे ऋषि शामिक के पुत्र श्रृंगी को जब यह घटनाक्रम मालूम हुआ उन्होंने राजा परीक्षित के सात दिनों के अंदर तक्षक नाग से डस कर मृत्यु हो जाने का शाप दे दिया.*

*शाप देने के पश्चात शमिक पुत्र श्रृंगी पिता के सम्मुख पहुँचकर विलाप करने लगे और उन्हें सारे घटनाक्रम से अवगत कराया इस पर शमिक ऋषि ने पुत्र श्रृंगी को जानकारी दी कि राजा के शरीर में देवताओं का वास होता है और क्रोधवश उनके द्वारा दिये गये इस शाप की जानकारी राजा परीक्षित को दी.*

*महराज श्री द्वारा भागवत् के अद्भुत आख्यान में यह कहा गया की जब शरीर किसी प्रकार से कार्य योग्य नहीं रह जाता है तो किसी दिव्य तीर्थ में सारे इच्छाओं एवं इंद्रिय लोभ का त्याग कर निवास करना चाहिये. इसी क्रम में राजा परीक्षित में जब शाप की जानकारी मिली तो वे अपने पुत्र जन्मेजय को अपना राजपाठ सौंपकर गंगातट पर अपने मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे.*

*जहाँ राजा परीक्षित जहाँ ठहरे हुये थे वहाँ समस्त ऋषि मुनियों पहुँचे, उन सभी विद्वानों से राजा परीक्षित ने अपनी मृत्यु की जानकारी हो जाने पर अपने शेष समय में किये जाने वाले कर्तव्यों के विषय में जानना चाहा परंतु कोई भी उनकी इस जिज्ञासा को शांत नहीं कर पाया. उनकी इस जिज्ञासा को शुकदेव भगवान ने शांत किया. शुकदेव भगवान को वर्णित करते हुये महराज श्री ने उन्हें ज्ञानवृद्ध की संज्ञा दी।*

*पूज्य गुरुदेव ने सभी भक्तों को कलयुग के बारे ओर किस तरह मनुष्य कलयुग में मुक्ति को प्राप्त कर सकता है पूज्य गुरुदेव ने सबसे सरल उपाय भागवत कथा को ही मुक्ति का उपाय बताया उदहारण के लिए राजा परीक्षत की कथा को सुनाया राजा परीक्षित ने सात दिन कथा को सुना और मुक्ति को प्राप्त हुए इसलिए जीवन में भागवत कथा को श्रवण करना चाहिए और यही मुक्ति का उपाय है. स्वामी श्री ने भागवत् के तृतीय स्कंध के विषय में सृष्टि की उत्पत्ति सहित शरीर के विभिन्न अंगों के देवताओं के नामों का उल्लेख किया.*

*महराज जी कृपापात्र प्रधान शिष्य महंत श्री सुदर्शन शरण जी महाराज एवं आयोजन प्रतिनिधि डा.भावेश शुक्ला "पराशर" ने  अवगत कराया जानकारी दी है की कल श्रीमदभागवत के चौथे दिन महराज श्री द्वारा जड़भरत चरित्र, कपिलोउपाख्यान, भक्त प्रहलाद कथा तथा अजामिल चरित्र का वर्णन किया जायेगा।*

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