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काव्य कलश :पुरुष होने के मायने

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पुरुष 

के विषय में 

मान लिया गया है 

कि  उसे 'समझ' 

लिया गया है

उसे परिभाषित

कर दिया गया है

वह दो का पहाड़ा है

 

पुरुष ने भी 

मान लिया है कि

वह परिभाषित 

किया जा चुका है

उसके कुछ विशिष्ट

मापदण्ड हैं , और 

वह उसे मानने के 

लिए वचनबद्ध  है

वचनबद्धता

को त्यागना

नपुंसकता है ,और

नपुंसकता

सबसे बड़ी गाली है..

 

उसे यह भी

स्वीकार करा

दिया गया है

कि उसके लिए 

निर्धारित सभी 

पैमाने 

उसी की  मर्ज़ी 

से बनाए गए हैं

जितना

स्वयं के प्रति निर्मम

उतना अधिक

पौरुष ..

(यह भी मर्ज़ी से)

 

और इसलिए

पुरुष होने पर

गर्व करना चाहिए

सो वह करता है

 

पुरुष होने का

अहंकार पुरुष में 

बोया हुआ नहीं

कलमी होता है ,जबकि

सभी उसे सहजात समझते हैं

 

पुरुष 

इसी भरम  से

हर्षित है कि

वह अपनी  मर्ज़ी से 

(जो किसने 

कब तय की किसी को पता नहीं )

बने नियमों के 

बंधन में है

और जो पुरुष नहीं

उन्हें भी पुरुष के

इसी भरम से

कष्ट  है....!!!

 

       - निर्विकल्प

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