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काव्य कलश : नानक-वंदन (गुरु नानक देव जी को समर्पित)

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गिरीश पंकज

 

दोहा

 

तलवंडी में अवतरे, ननकाना अब नाम।

जन्मस्थली बन गयी, सुंदर तीरथ धाम ।1

सन चौदह सौ उनहत्तर, हुआ एक अवतार।

गुरु नानक जी नाम से, परिचित है संसार।।2

 माँ तृप्ता, कालू पिता, दोनों भये निहाल।

सुंदर बालक देखकर,  हर कोई खुशहाल।।3

 

चौपाई

 

बचपन से ही थे गुरु ज्ञानी, बंद नयन रहते बस ध्यानी। 1

मात-पिता दोनों घबराए, पंडित के घर उन्हें पठाए।2

देख ज्ञान नानक का भारी, कहने लगे सभी अवतारी।3

फिर मौलवी कुतुब भी आए, देख के प्रतिभा वे चकराए ।4

नानक के आगे सब फीके, हर कोई उनसे ही सीखे।5

गाय चराने वन को जाते, छोड़ उन्हें बस ध्यान लगाते ।6

नाग करे तब फन से छाया, कैसी थी ये प्रभु की माया। 7

चमत्कार वाला था जीवन, महसूसा सब ने ही प्रति क्षण। 8

 

दोहा

 

शादी हुई फिर बाद में, आई दो संतान ।

नानक निर्मोही रहे,  करें  निरन्तर ध्यान।। 4

अदभुत सन्त उदार थे, दिया यही पैगाम।

बोलो सारे लोग इक्क, ओंकार सतनाम।। 5

 

(शीघ्र प्रकाश्य 'नानक-पचासा' का एक अंश)

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