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सरपंच का नेता बनकर,राजनीति की दशा और दिशा को नियंत्रित करने की क़ाबिलियत नंदकुमार पटेल में थी इसी ने उन्हें जननेता बना दिया था..,

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नितिन राजीव सिन्हा

छत्तीसगढ़ की राजनीति का वह संदर्भ सदैव जीवित रहेगा जब कभी ज़मीन के आदमी के सेवा के लिये ज़मीनी नेता की बात होगी तब स्व.नंदकुमार पटेल याद किये जायेंगे उनके लिखे हुए वे अध्याय पढ़े जायेंगे जो स्याही क़लम से नहीं बल्कि ख़ून और पसीने से लिखे गए हों,कांग्रेस को उसके पाँव पर खड़ा करने,उसे विघ्नसंतोष के पर्याय अजीत जोगी पिता पुत्र के वर्चस्व के दौर में तथा भाजपा के धनबल,सत्ताबल के आगे सशक्त संगठन के तौर पर खड़ा करने में सफलता पाने के योगदानों के लिये स्मरण किया जायेगा..,

२०११ में कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही पटेल ने ब्लॉक लेवल पार्टी कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग कैम्प की शुरुआत कर दी थी यह उनके आक्रामक शैली में शुमार थी वे कांग्रेस के सोये हुए लोगों को जागृत कर रहे थे तब कांग्रेस नेता कन्हैया अग्रवाल जो रायपुर में रमन सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे थे कहते थे यार,पटेल जी सोने भी नहीं देते हैं कार्यकर्ताओं के घर पहुँच जाते हैं ऐसा सभी कांग्रेसी कहते थे..,

एक वाक्या याद पड़ता है पटेल जी के बड़े पुत्र दिनेश बता रहे थे रात के एक बजे पापा घर आये फिर सुबह पाँच बजे हम बिंद्रानवागढ़ विधान सभा में एक सभा थी वहाँ के लिये निकल गये वह एक बजे दोपहर को थी,पर वहाँ आठ बजे पहुँच गये तब पटेल जी नये नये अध्यक्ष बने थे उस जगह के लोग उन्हें चेहरे से नहीं पहचानते थे..,

दिनेश बता रहे थे कि पापा रेस्ट हाउस से निकले सभा स्थल तक गये और ग्रामीणों के साथ मिल कर दरी बिछाने लगे मंच पर कुर्सियाँ वग़ैरह जमा रहे थे नीयत समय पर नेता पहुँचने लगे फिर कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल को मंच से परिचित कराया गया,उपस्थित जन समुदाय आह्लादित हो गया उसकी ख़ुशियों का ठिकाना न रहा कि जिसे वो मामूली कार्यकर्ता समझ रहे थे जो कुछ देर पहले मज़दूरों के काम में हाथ बँटा रहा था वह कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल हैं..,

आज पटेल जी की जयंती है उन्हें नमन करता हूँ उनके रक्त से सींचे हुए छत्तीसगढ़ की धरा की माटी अपने शीश से लगाता हूँ एक शून्य को देखता हूँ वहाँ से उठ कर खड़े हुए कांग्रेस को सत्ता शीर्ष पर देखता हूँ एक उद्गार प्रेषित करता हूँ-

क्या लौट कर

आयेंगे कोई

पटेल,लहू से

अपने धरा को

सीचने उसमें

उर्वरा भरने

कुछ फूल 

खिलाने,अमन

की राह तलाशने

उन्होंने उम्र को

तराशा था

इक ज़ख़्म सीने

में सहेजा था

फिर लौट न

सका के,वह इंसा 

अल्हदा था..,

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