अब ये चहक कहाँ पाता है सूना घर,
जाने क्यूँ सोया रहता है सूना घर।
आँगन की तुलसी भी गुमसुम रहती है,
दीवारों में ही सिमटा है सूना घर।
खिड़की- दरवाजे सँग कितना गाते थे,
मौन ही अब खुद को रखता है सूना घर।
यादों में जब भी आता है पिछला पल,
कानों में गुन- गुन करता है सूना घर।
चूहे और गिलहरी कुछ -कुछ बोले हैं,
पर चुप्पी साधे रहता है सूना घर।
बापू के वो हाथ अभी भी सर पर हैं,
माँ का प्यार दिखा जाता है सूना घर।
आँधी ने जब से दरवाजे बंद किए,
कुछ भी बोल नहीं पाता है सूना घर।
डॉ सीमा विजय