बाबू थे कभी चपरासी हो गए ।
शासन निति से फांसी हो गए ।
सारे अधिकारी कभी ढुंढते थे हमको ,
शायद आज सबके लिए बिमारी हो गए ।।
चमचागिरी की हद ही कहिए ,
नीचे वाले अधिकारी हो गए ।
कल अकेले महकमा संभालने वाले ,
आज बाबू से मदारी हो गए ।।
जब वसूली का अवसर आता है ,
तब बाबू प्रिय हो जाता है ।
काम निकलते ही अधिकारी के ,
चाय में मक्खी बन जाता है ।।
सबका वेतन आकाश है छुता ,
अपना गर्त में जाता है ।
बस अपना वेतन फोकट का है ,
बाकि मेहनत से पाता है ।।
अधिकारी सारे बाबू से ही ,
एैश सदा करते ही आए ।
आज उसी का विरोध किये तो ,
लिपिक कामचोर कहलाए ।।
वाह रे शासन हद है होती ,
कुछ अकल से काम करो ।
चमचागिरी छोड़ हकीकत ,
लिपिक दर्द संज्ञान करो ।।
सबसे ज्यादा कामचोर है ,
अधिकारी उसे ही भाता है ।
जिसको कुछ भी काम न आता ,
वही प्रमोशन पाता है ।।
यह कैसा इंसाफ चला है ,
देश में होता भक्षण है ।
सामान्य का अनुभव भाड़ में जाए ,
प्रमोशन में भी आरक्षण है ।।
हर सरकार की अत्याचारी ,
बस कुर्सी उसे बचाना है ।
प्रजा की आशा भाड़ में जाए ,
आरक्षण विधेयक लाना है ।।
मेहनत वाले ताक रहे हैं ,
आस लगाए उम्मीदों से ।
वेतन की कब मिटेगी दुरी ,
कब मिलेगी न्याय फकीरों से ।।
बरसों का कचरा थोप रहे हैं ,
हर बाबू बना बस स्वीपर है ।
बस फाईल व्यवस्था चार्ज है पाता ,
अधिकारी के नजर में जोकर है ।।
वाह रे भयानक अफसर शाही ,
जितना कोसें कम है सही ।
ठकुरसुहाती करने वाले ,
पाएं प्रतिष्ठा चाहे टन्न ही रही ।।
अंधे बहरों की नगरी में ,
कब बाबू को न्याय मिलेगा ।
सबका काम बनाने वाले ,
शांत चित्त का हाय मिलेगा ।।
चांपा से भाई ए.जी. खान