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वामपंथी पार्टियों के राज्य स्तरीय धरने की मांग : मंदी से निपटना है तो आम जनता की जेब में डालो पैसा

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वामपंथी पार्टियों के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर आयोजित राज्य स्तरीय धरने में आज वाम नेताओं ने मोदी सरकार द्वारा देशव्यापी मंदी से निपटने के तौर-तरीकों की आलोचना करते हुए मांग की कि रोजगार सृजन और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों के जरिये आम जनता की जेब में पैसे डाले जाएं, ताकि बाज़ार में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बने. उन्होंने कहा कि ऐसा करने के बजाये यह सरकार देशी-विदेशी कार्पोरेटों की तिजोरियों को ही बैंकों की क़र्ज़ माफ़ी, सस्ते दरों में ब्याज और बेल-आउट पैकेज के जरिये भर रही है. इससे आम जनता और बदहाल होगी और अर्थव्यवस्था बर्बाद.

इस धरने का आयोजन प्रदेश की तीन वामपंथी पार्टियों – *माकपा, भाकपा और भाकपा (माले)-लिबरेशन* – द्वारा किया गया था, जिसमें रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, कोरबा, बिलासपुर सहित पूरे प्रदेश से आये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.

धरने को संबोधित करते हुए माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के जरिये आम जनता की कमर तोड़ दी गई है. मजदूर-किसान और छोटे व्यापारियों की बचत गिर गई और वे क़र्ज़ में डूब गए है. अब उनकी जेब में पैसे नहीं है कि बाज़ार में जाकर सामान खरीद सके. मंदी का यही कारण है. उन्होंने कहा कि इस मंदी के बावजूद सरकार ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सामाजिक कार्यों में एक लाख करोड़ रूपये कम खर्च किए हैं. इस राशि से 570 करोड़ श्रम दिवस पैदा किए जा सकते थे और 5.7 करोड़ ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार मनरेगा में उपलब्ध कराया जा सकता था. इससे बाज़ार में मांग बढ़ाई जा सकती थी. उन्होंने किसानों की क़र्ज़ माफ़ी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत के डेढ़ गुना कीमत पर फसल खरीदी की भी मांग की.

भाकपा (माले)-लिबरेशन के सचिव बृजेन्द्र तिवारी ने सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण की तीखी आलोचना की और कहा कि पिछले तीन सालों में देश में पांच करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं, औद्योगिक विकास में भयंकर गिरावट आई है, इसके बावजूद मोदी सरकार को मंदी नहीं दिख रही है. उन्होंने कहा कि सरकारी समितियों ने न्यूनतम मजदूरी 450 रूपये करने की मांग की है और यह सरकार 178 रूपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि विश्व भूख सूचकांक में भारत का स्थान 55वें से गिरकर 102वां हो गया है और आज पूरे विश्व के आधे भूखे और कुपोषित लोगों की संख्या हमारे देश में ही है. रोजगार सृजन उन्होंने सरकारी खाली पदों को भी भरने की मांग की.

भाकपा के सहायक सचिव कमलेश ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाने की मांग की. उन्होंने मांग कहा कि मोदी सरकार गोदामों में भरे अनाज के भंडार को विदेशों को दान करने के लिए तो तैयार है, लेकिन देश के गरीबों को सस्ते में बेचने के लिए तैयार नहीं है. ऐसी रवैये वाली सरकार जनविरोधी ही हो सकती है.

सभा का संचालन माकपा सचिवमंडल सदस्य धर्मराज महापात्र ने किया, जबकि अध्यक्षता माकपा सचिवमंडल सदस्य बी. सान्याल ने की. अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के विकास के आंकड़े भी फर्जी है. आइएमएफ, नोबेल प्राप्त अभिजीत बेनर्जी सहित तमाम अर्थशास्त्री इस बात को कह रहे है. बैंकों का दिवालिया होना, रिज़र्व बैंक की रिज़र्व मनी छिनना, सार्वजनिक क्षेत्रों को बेचना इस बात का सबूत है. उन्होंने कहा कि लाभप्रद भारत पेट्रोलियम को, जो इस सरकार इस सरकार के खजाने में हर साल 7000 करोड़ रूपये जमा करती है, उसे औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है. बीएसएनएल को बर्बाद कर दिया गया है. रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया जारी है. ऐसी सरकार के हाथों देश सुरक्षित नहीं हो सकता. उन्होंने आरोप लगाया कि समस्याओं से जनता का ध्यान भटकने के लिए ही राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता का उन्माद फैलाया जा रहा है.वा

वामपंथी धरने को माकपा के समीर कुरैशी, शांत कुमार, प्रदीप गभने, प्रशांत झा, भाकपा के विनोद सोनी, लखन सिंह, ओ. पी. सिंह, भाकपा (माले)-लिबरेशन के नरोत्तम शर्मा, अशोक मिरी, लल्लन राम, छत्तीसगढ़ किसान सभा के नंदकुमार कश्यप, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के विजय भाई आदि ने भी संबोधित किया. उन्होंने मोदी सरकार की कार्पोरेटपरस्त नीतियों को इस मंदी और देश की बर्बादी की जड़ बताते हुए इसके खिलाफ अथक संघर्ष करने और आम जनता को लामबंद करने की जरूरत बताई. सभी नेताओं ने 8 जनवरी को आहूत देशव्यापी मजदूर हड़ताल को भी सफल बनाने की अपील की.

 

 

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