बेवजह चले थे
सच के साँचे
में ढलने..,
मंडी थी इक
वजह धंधे
की थी
असत्य को
उठाया है
सिर आँखों
पर,दैनिक भास्कर
तुम धन्य हो
जो असत्य के
मार्ग पर सत्य
को ध्वस्त करते हो..!!!