मेरी कविताओं
में शब्द नहीं होते
राख होती है
वह,उड़ती है
आसमाँ से
जमीं तक
धुँध बन कर
छा जाती है
शब्दों के बीच
घिरे हुए आदमी
मे वह
कविता ढूँढती
है,गिर कर
उठते हुए
इंसा की
सूरत को
वह स्याही
से पोत देती
है..,शब्दों की
दुनिया में शब्द
औरों से उधार
लिये जाते हैं
नेता,स्पीच राइटर
को पगार पर
रखते हैं औरों
के लिखे हुए
शब्द पर भाव
नेता भरते हैं
ताली उस पर
जनता पीटती
है..ताली पीटती
हुई जनता पर
नेता अहसान
थोपता है
सेवा करने
के लिये वह
सत्ता की चावी
माँगता है
जनता के हक़
की दीवारों की
हदें वह नापता
है फिर,जनता को
कारा’वास’
में क़ैद कर
नेता सत्ता के
मज़े लूटता है..,