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आखिर क्यों मजबूर हैं जवान, उच्च श्रेणी की कमांडो ट्रेनिग के बाद भी सिक्युरिटी गार्ड और खेती किसानी करने के लिए..

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देश को जिन जाँबाज जवानों पर नाज होना चाहिए था आज उन्हें सामान्य जीवन जीने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है...

कोलकाता:- आप कल्पना कीजिये कि 125 करोड़ की आबादी वाले भारत देश मे अगर सेना/अर्धसेना के कुल 18 लाख जवान सेवा दे रहे हो तो औसतन प्रति सात से दस हजार व्यक्तियों की सुरक्षा के पीछे सिर्फ एक जवान पाया जाएगा।। यह अंतर इतना बड़ा है,कि इसकी गम्भीरता को समझे बगैर एक-एक जवान के जीवन मूल्य की कीमत आप नही समझ पाएंगे।।
वही यह भी जानना जरूरी है कि देश अपने एक कमांडो को ट्रेंड करने के लिए कितने रुपये खर्च करता हैं।। विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार भारत का एक कमांडो जवान को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण के लिए सरकार तकरीबन एक से सवा करोड़ रुपये खर्च करती है।।भारतीय सेना के पैरा कमांडो और अर्धसेना के कोबरा कमांडो को मिलने वाला प्रशिक्षण दुनिया के कठिनतम प्रशिक्षणों में से एक होता है।। *जंगल वारियर के नाम से विख्यात कोबरा कमांडो* मुख्यतः केंद्रीय पुलिस बल के जवान होते हैं।। इन्हें देश की आंतरिक चुनौतियों और कठिन से कठिन हालात में लड़ने योग्य बनाया जाता है।। जबकि भारतीय सेना के पैरा कमांडों दुश्मन देश की सीमाओं के भीतर जाकर भी बड़े से बड़ा सफल आपरेशन करने के लिए बनाये जाते है।। इनके अलावा सेना में ब्लैक कैट कमांडो,वायुसेना में गरुड़ कमांडो जल सेना में मरीन कमांडो(मार्कोस) भी समान स्तर की कठिन से कठिन ट्रेंनिग के बाद ही कमांडों का दर्जा पाते है।।
भारतीय सेना और अर्धसेना में कुल 10 प्रकार के कमांडों होते है। इनमें मुख्यत:

1 एलीट पैरा कमांडोज

2 घातक कमांडो

3 स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एस पी जी)

4 इंडियन नेवी के स्पेशल मरीन कमांडो ‘मार्कोस’

5 नेशनल सिक्युरिटी गार्ड nsg

6 एयरफोर्स की गरुड़ कमांडो फोर्स

7 सीआर पी एफ की कमांडो फोर्स कोबरा

8 सीआईएसएफ की कमांडो फोर्स

9 इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस

10 swat कमांडो

एक कमांडो की विशेषता और महत्व के बारे में कहा जाता है कि आम तौर पर प्रत्येक 10 हजार नागरिक में एक भारतीय सैनिक/जवान चुना जाता है। जबकि प्रत्येक दस हजार सैनिकों/जवानों में से कोई एक कमांडो बन पाता है। मतलब प्रत्येक एक लाख भारतीय नागरिको में से एक कमांडो चुना जाता है।। अब ये तो रही देश के जवानों और कमांडोज के महत्व वाली बात। परन्तु यहाँ यह जानना जरूरी है कि क्या देश और उसका सिस्टम भी इन जवानों/कमांडोज के महत्व को समझता हैं। हम एक ट्रेंड कमांडो की अमूल्य सेवा के बदले उसे क्या देते है.?
इन दो सवालों के उत्तर जाने बगैर हम अपने ही सैनिक/जवानों/कमांडोज के सांथ न्याय नही कर पाएंगे।। सच तो यह है कि देश में पिछले 72 सालों से चल रही स्वतंत्र लोकतांत्रिक व्यवस्था ने अपने ही सैनिक जवानों और कमांडोज के सांथ कभी न्याय नही किया।। जी हां बीते कुछ वर्षों में एक नही बल्कि कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें देश की दोषपूर्ण सैन्य/राजनीतिक व्यवस्था ने कठिन से कठिन हालातों में जिंदा रहकर और जटिल से जटिल चुनौतियों का सामना कर सकने वाले जवानों विशेष कर कमांडो के सांथ न्याय नही किया।

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